गुरुवार, 29 नवंबर 2012

बीच में


समर्थ और स्नेहशील पिता बेटी की सुरक्षा एवं ख़ुशी का किस तरह बीमा कर देता है, यह चंदर ने इस तरह से पहले कभी नहीं देखा था। सुधा के पिता को उसने सिर्फ एक बार शहर की मेट्रो में देखा था, जब वह सुधा की मां के साथ सुधा को लेकर एम्स आए थे। सुधा जैसी ही लंबी उंगली और सुधा ऐसा ही चेहरे पर भावशून्यता। सुधा ने ही उसे बताया था कि उसके पिता ‘‘लव मैरेज‘‘ के सख्त खिलाफ थे और ऐसी शादियों  में वह बुलावे पर भी नहीं जाते थे। उन्हें जब सुधा और चंदर के बारे में पता चला था तो करीब तीन महीने तक उन्होंने सुधा से बातचीत तक नहीं की थी....

आधी रात से पहले


बखरी उसके लिए इस रात को मनाने के लिए सबसे उपयुक्त जगह थी। घनघोर अंतर्विरोध और नपुंसक क्रोध के बावजूद चंदर खुद को संभाल नहीं पा रहा था। सुधा का इस तरह उसे धोखे में रखना उसे बार बार कचोटता और उसे खुद से घिन्न आती है। जो अंतरंग पल उसने सुधा के जन्मदिन पर जिले के तावनशिप कहे जाने वाले एक जगह पर बिताया था, उस पल को लेकर वह अपराधबोध से ग्रस्त हुआ जा रहा था। अगर उसे सुधा केे इंगेजमेंट के बारे में पता होता तो वह सुधा को स्पर्श भी नहीं करता। छी कितना गिरा हुआ है वह... चंदर शीत  में पूरी तरह भींग चुका था......... लेकिन उसके अंदर के मौसम का इस विपरीत मौसम से कोई तालमेल नहीं था।

‘‘जो करना है कीजिए, जैसे करना है कीजिए, लेकिन उसकी शादी नहीं टूटनी चाहिए बस‘‘ अर्णव  को उसने फोन पर कहा था।

अर्णव मजबूर थे। उनका ब्रहस्पतिवार का ब्रत था और भूखे और तनाव में रहकर भी अगर वह सुधा के भाई की सुनते जा रहे थे तो इसके पीछे चंदर की विनती काम आ रही थी। जान चली जाए लेकिन प्रिया को जिंदगी मिले यह सोच चंदर के दिमाग में घर कर गई थी और यही प्रार्थना लेकर वह दफ्तर में अपनी बीमारी का बहाना बनाकर दुर्गापूजा में विंध्याचल गया था। उसे पता था सुधा की जिंदगी के लिए उसे विष पीकर भी उसकी शादी वैसे लड़के से होते हुए देखना पड़ेगा, जो सुधा की जिंदगी बचाने के लिए डाॅक्टर की फी दे सकता हो। चंदर की गरीबी सुधा को बचा नहीं पाती और चंदर खुद को इस अपराध का एकमात्र अभियुक्त नहीं बनाना चाहता था।

‘‘आप उसका लव लेटर और सारा इमेज, वीडियो भेजिए अभी मेरे मेल पर‘‘ अर्णव ने तैश में आकर अपने छोटे साले को कहा था।
‘‘मैं कल कर दूंगा, आज नेट नहीं चल रहा है‘‘ चंदर ने बहाना बनाया और फोन रख दिया। उसे पता था कि अर्णव उसके जीजाजी के अलावे अपनी कुछ अलग पहचान भी रखते हैं और टूटती षादी करवाने के लिए उन्हें समाज में अतिरिक्त प्रतिश्ठा भी मिली हुई है। अगर उनके हाथ कुछ ऐसा वैसा लग जाता तो सुधा की बीमारी का इलाज फिर कौन कराता!


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इस बीच उसने जो सबसे हिम्मत का काम किया वह था अपने भैया से क्षमायाचना का आखिरी प्रयास, जो व्यर्थ रहा। सुधा को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उसने अपने भैया से झूठ कहकर उसे वहां पढने भेजा था। चंदर के भैया यूपीएससी के दरवाजे से लौटे हुए थे और एसएससी एलडीसी की मोटे पगाड़ और स्टेटस वाली नौकरी का ज्वाइनिंग लेटर पाकर भी उन्होंने ज्वाइन नहीं किया था। हाल में उन्होंने कविताएं भी लिखनी शुरू कर दी थी और फिलहाल एयर फोर्स के अधिकारियों के बच्चों को पढाने के लिए भारत सरकार ने उन्हें नियुक्त कर रखा था। वह अपनी कविताएं फेसबुक पर डालने लगे थे। उनका फेसबुक का अकाउंट भी चंदर ने ही बनाया था, जिस तरह उसने सुधा का बनाया था। वह सुधा को नेट फ्रैंडली और इतना माॅडर्न लुक देना चाहता था कि वह डाॅक्टर बनने के अपने अधूरे सपने के दर्द को भूल जाए। भूल जाए वो पटना हाॅस्टल में रहने के दौरान हुई उस बीमारी को और वो सबकुछ जो उसे दर्द देता था, लेकिन सुधा को चंदर द्वारा लगाई गई भूलने की बीमारी ऐसी लगी कि अपनी मंगनी और शादी की जानकारी देते वक्त वह चंदर को ही भूल गई!

रात असर दिखा रही थी। लगन तेज था और चंदर छत पर इधर से उधर बदहवाश सा टहल रहा था। मां उसे कई बार खाने के लिए फोन कर चुकी थी और अब उन्होंने भी छोड़ दिया था फोन करना! चंदर ने मां को सुधा की शादी के बारे अंतिम जानकारी दे दी थी।
फोन रिसीव करने से पहले चंदर को पता नहीं था कि यह उसकी सुधा से शायद आखिरी बात है!
‘‘हम दोनों मिलकर तुम्हारे लिए लड़की खोजेंगे..... हमारे बीच परसों क्या बात हुई थी....... तुम प्लीज खुद को संभालो....... मेरे प्यार को बदनाम मत करना...... मुझे माफ कर दो......‘‘
              सुधा बोली जा रही थी।

चंदर के पास अब सब्र बाकी नहीं रहा था। उसने बेहद आक्रोश  में आकर सुधा को आगे से उससे बातचीत न करने की कसम दे डाली........ चंदर के मन में अपने भैया और पूरे परिवार के अपमान की टीस रंग दिखा रही थी........ साथ ही उसे रह रहकर सुधा का छल भी परेशान कर रहा था।  इन सब बातों का भड़ास एक बार निकला और फिर सुधा ने उधर से फोन काटा या फोन अपने आप कटा यह चंदर को ध्यान नहीं रहा। वह तो बोलते जा रहा था लेकिन फोन कट चुका था। चंदर की बात सुनने के लिए सुधा के साईं बाबा ने किसी को बनाया ही नहीं था और चंदर के किसी जनम की सजा उसे दी थी शायद कि चंदर सिर्फ अपनी डायरी तक ही अपने दर्द को छलकाए। इससे अधिक नहीं! चंदर बेसुध सीढी पर बैठ गया और दोनों आंखों के आगे हाथ रखकर नीचे की सीढियों को देखने लगा।

चंदर ने यह सब किसके लिए किया इसका कोई वस्तुनिष्ट जवाब शायद नहीं था! सवाल और जवाब एक दूसरे के इतने समानांतर हो चुके थे कि उन दोनों का मिलना करीब असंभव सा हो चुका था......
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अनंत की ओर

रात का खाने का तिरस्कार करना चंदर को काफी भारी पड़ा और उसकी स्थिति बिगड़ने लगी। कंबल के अंदर खुद से इस तरह उसे बात करते मां ने कभी नहीं देखा था। हां, चंदर को देर रात डायरी लिखते और न्यूज चैनलों में जिस तरह एंकर खबर पढते हैं, उसका रियाज करते हुए उसके घरवालों ने उसे कई बार देखा था। मां दो चार और रजाइयां उसके उपर रखकर चलीं गईं और जाते जाते दरवाजा भिरका गईं।

दिमाग की हलचल अपने चरम सीमा पर पहुंच गई थी। उसे बार-बार सुधा का वो आखिरी एसएमएस याद आता जिसमें उसने उसे धिक्कारा था कि वह उसके पापा को कभी उसका भेजा हुआ लव लेटर न दिखाए नही ंतो वह जहर खा लेगी। उसने यह कहकर पहले से कराह रहे चंदर को ब्लैकमेलर की अघोषित उपाधी दे दी थी। चंदर के लिए इस तीर के दर्द को सहन करना सबसे जटिल था। कटिहार तक का रिजर्वेशन लेकर भी अगर वह खगडि़या में चलती ट्रेन से उतर गया था तो इसके पीछे सुधा को जिंदा देखने का स्वार्थ था। उसकी शादी होगी, उसके पति के पास उसे ठीक करवाने का रूप्या होगा और सुधा हमेशा वैसे मुस्कुराती रहेगी जैसे मेट्रो में आखिरी बार मुस्कुराई थी।

प्यार में अपने प्यार को खोने की शर्त मानने का यह पहला मामला उस शहर में था!

सुधा के भाइयों का नजरिया उसे चिढाता था...... पटना में रहनेवाले एक वकील भाई से उसने सुधा की शादी की डेट नाटकीय तरीके से पता की थी। एक जाॅब का लालच देकर उसने मनोरंजन से पता किया था कि शादी  किस तारीख को कहां होने वाली है। सुधा के घर चंदर के कुछ जासूस थे, जिससे सुधा की तबियत की खबर मिलती रहती थी! च्ंदर परेशान न हो ये सोचकर अगर सुधा उसे कुछ नहीं बताती तो चंदर अपने इन जासूसों से दिमाग का इस्तेमाल कर अंदर की जानकारियों लेता।
खबरें कैसे निकाली जाती है यह विकीलिक्स के संस्थापक जूलियन असांजे की लेखनी पढकर उसने और बेहतर से सीखा था। मैट्रिक पास करते करते चंदर को मीडियागिरी की ऐसी धुन चढी थी कि उसने स्नातक की पढाई करते हुए ही तीन स्टिंग ओपरेशन स्टार न्यूज के सीनियर के साथ मिलकर कर दिया और फिर आईआईएमसी से निकलते निकलते उसका नाम किताब में छप गया। अखवार और न्यूज पोर्टल उसके ट्विट को जगह देने लगे और फिर चंदर ने पीछे न देखने का निश्चय कर लिया। चंदर वो सब करता जो उसका मन करता....... स्टेटस की कभी परवाह ही नहीं की उसने और उसका खामियाजा उसे तब निशब्द होकर चुकाना पड़ा जब सुधा के सूरज भैया ने अर्णव के सामने उसके स्टेटस पर सवाल खड़े कर दिए!

सूरज की होने वाली पत्नी बैंक पीओ थीं। सुधा अपनी भाभी को लेकर एक विचित्र मानसिकता से ग्रस्त थी। निशा को बैंक पीओ होना सुधा को लगर जलाता तो इसकी दो वजहें थी। पहली कि सुधा समय की मार के कारण अपना कोई स्वतंत्र स्टेटस नहीं बना पाई थी और दूसरा कि बैंक पीओ बीबी के बाद सूरज सुधा से और दूर हो गया था। परिवार के बीच सुधा की घटती बढती दूरियों को भरने का जिम्मा चंदर के सर था। दिल खोल कर निशा और सूरज की शिकायत करती सुधा चंदर से......उसने उसका नाम हनी सेव किया है वगैरह वगैरह. लेकिन फिर कभी बड़ाइयां शुरू होती तो चंदर को खूब हंसी आती और वह मयूर विहार में अपने छत पर खूब ठहाके लगाकर हंसता।

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निस्संदेह इस निर्णायक और बेहद संवेदनशील तरीके से खेले गए खेल में भारी अंतर से सुधा के घरवालों की जीत हुई थी लेकिन चंदर बार बार खुद से एक ही सवाल कर रहा था कि - वह उसे हार को हार कैसे स्वीकार करे, जो सिर्फ उसकी वफादारी के कारण हार बन गई! सुधा और उसकी जिंदगी के बीच उसने एक को चुना था जैसे प्रसव के दौरान दुघटना होने पर कोई पुरुष बच्चा और पत्नी में एक को चुनता है। अब चंदर कीमत चुका रहा था लेकिन उसे भी अपने किए की कीमत चाहिए थी और यह नग्न सच्चाई बार बार उसके पास आती और गुजर जाती। सुधा ने उसके विश्वास को रौंदा था और औरंगजेव की तरह दाराशिकोह के धड़ को चांदनी चौक  के पास पीपल के पेड़ में टांग कर रक्त टपकने के लिए छोड़ गई थी।

ठीक है कि सुधा ने अपने ‘‘नए चंदर‘‘ को पुराने चंदर के बारे में बता दिया होगा लेकिन क्या एक लड़के के लिए इतना ही काफी है कि वह अपनी वाइफ के जुबां से उसके पुराने जीवनसाथी के बारे में सुनकर तसल्ली कर ले। ‘‘नए चंदर‘‘ ने इसकी जरूरत क्यूं नहीं समझी कि वह एक बार ‘‘पुराने चंदर‘‘ को अप्रोच करके अपनी होने वाली वाइफ को क्रोस चैक कर ले कि वह कितनी सही है और कितनी गलत! या फिर ये कि ‘‘पुराना चंदर‘‘ सुधा के बारे में क्या राय रखता है! बारह लाख का दहेज इतना असर दिखाता है क्या?
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इसकी क्या गारंटी है कि जिस तरह हाड़मांस का यह पुतला चंदर के लिए अपने परिवार की कसमों को भूल गया और फिर ‘‘नए चंदर‘‘ के लिए पुराने चंदर को रोने तड़पने के लिए छोड़ गया, उस पुतले में कल कोई आत्मा आकर बस जाएगी और उसे इंसान बना देगी? बारह लाख का यह रिचार्ज कूपन कब तक चलता है यह देखना दिलचस्प होगा! अगर यह रिचार्ज कूपन लाइफ टाइम की वैलिडिटी दे देता है तो फिर झूठ बोलते हैं वे लोग जो कहते हैं कि प्यार को रूप्यों से नहीं खरीदा जा सकता है! और अगर नये चंदर का प्यार पुराने चंदर की जगह लेता है तो फिर प्यार सचमुच खुदा है!


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रात बिल्कुल स्थिर हो चुकी थी और चंदर कुछ बुदबुदा रहा था.....शायद ये कि...... मेरे भी कुछ रक्त संबंधी हैं, इनका सुख दुख मेरा है, पर मेरा सुख दुख मेरा ही रहेगा। ये उसे बांट नहीं सकेंगे। एक हद के बाद उसे समझ भी नहीं पाएंगे........


मंगलवार, 27 नवंबर 2012



                                 एक डायरी का यूं खो जाना


        "तुम्हें पता है तुम मुझे सबसे सुन्दर कब लगी थी सुधा..."! चंदर कभी कभार उसे फोन पर कह देता था......... जब वह बहुत अपसेट होता और वह उसके बार बार कहने पर भी उसे कोई मेल नहीं करती। कब? दिवाली की उस रात जब तुम लहंगे में सबकी नजरों से छिपते छिपाते गली के मोड़ तक आई थी... उपर आसमान पटाखों से तंग था लेकिन... लेकिन नीचे तुम्हारे चेहरे पर बर्फ पिघल रही थी। लड़कियां हमेशा असहज होने पर ज्यादा खूबसूरत दिखती है। वो चंदर की उसके गलियों में बीती उसकी आखिरी दिवाली थी। उसी तरह जिस तरह वो दुर्गापूजा... जिसमें वे रंगेहाथ धराए थे...! उसी तरह वो छठ आखिरी छठ था जब सूरज ढलने तक सुधा की रेलिंग के बाहर चंदर ने उसे देखते हुए शाम बिताई थी ...... अपने घर से दूर एक दूसरे मोहल्ले में। लफंगों की तरह लाइन मारने का यह विकलांग दौर खुदा ने शायद चंदर के किसी नेक काम के इनाम के तौर पर उसे बख्शा  था। फिर न कभी वो दिवाली आई, न दुर्गापूजा और न ही फिर किसी छठ में चंदर ने आफिस में छुट्टी के लिए आवेदन दिया या गुजारिश की! वह नई जॉब पाने के धुन में लग गया ........ गोया नई जॉब पाके मानो वह सुधा के साथ शादी कर लेगा........ शादी की कई शर्तें तब थी जो सुधा की शादी से ठीक पहले अप्रत्याशित रूप से इतनी बढ़ी कि चंदर बुरी तरह घबरा गया था........ डायरी के पन्ने भर जाने के बाद उसके शब्द अलग कागजों तक छलक जाते थे........ दफ्तर में उसने एक नया ब्लॉग बना लिया......लैपटॉप उसकी नई डायरी बन गई थी......... चंदर लाख कोशिश करता लेकिन खुद से भाग नहीं पाता .......


        आदमी कितने सवालों का जवाब दे! कितनी बार दे! किस-किस को दे! और कब तक दे! 2009 और 2012 में फर्क था। समय की पीढि़यां इंसानों की तरह लंबा समय नहीं लेती। परिस्थितियां समय को कब प्रौढ बना दे और कब नवजात कर दे यह प्रेमचंद और कमलेश्वर जैसे लेखक भी नहीं समझ सके तो चंदर तो अभी आत्मनिर्भर होना भी ठीक तरह से नहीं सिखा था....... रोज-बी-रोज अपनी प्राथमिकताएं तय करता और अगली सुबह फिर हवा की तरह शहर में इधर उधर बहता रहता....... इतिहास उसका पीछा पहले से कर रहा था और अब वर्तमान ने भी चंदर की बची खुची चैन छीन लिया था....... हद नफरत हो गई थी उसे रोमांटिक गानों से ....... मेट्रो में हाथ में हाथ डालकर चल रहे जोड़ों से और वो हर चीज से जो उसे धिक्कारती थी कि उसके पास जवाब नहीं है....... अपराधबोध और गर्वबोध उसके अन्दर बारी बारी से झोंको की तरह आता और उसे अशांत कर के चुपचाप चला जाता.......

   2009 तक उस कोठली के सारे दरवाजे बंद थे और लोग प्रताडि़त करके चंदर को सवालों से मारते थे..... चंदर मार खाता और वो फिर मारते....... आखिरकार किस्मत की मदद से चंदर उस कोठली से एक दिन भाग गया.......बहुत दूर..... कम से कम हजार किलोमीटर दूर..... एकदम दूर..... एक नहीं निर्वात के कई महासागरों के पार अपनी एक छोटी सी दुनिया बसाई उसने...... यहां सवाल पूछने वाला कोई नहीं है सिवाय उसकी डायरी के। डायरी को जवाब देना और बात है क्योंकि वह काउंटर क्वेश्चन नहीं करता। उसे सब पता है... 2004 से 2008 और 2008 से 2009 तक। उसके पास चंदर के हर दिन, हर रात और हर ब्यौरे का ब्यौरा है। उसके सवालों से डर नहीं लगता। इत्ता सा भी नहीं! डायरी को पता है चंदर उससे झूठ नहीं बोलेगा और चंदर को पता है कि वह अगर डायरी से झूठ बोला तो पकड़ा जाएगा।

         चंदर को सुधा की शादी का पता अपने सूत्रों से चला था। चौंका था एक बारगी वो इसलिए नहीं कि सुधा सुहागन हो रही थी बल्कि इसलिए कि सुधा ने उसे बताया नहीं था। मेट्रो में उसके उंगली में अंगूठी देखकर चंदर को एक बार शक हुआ तो उसने एसएम्एस से पूछ लिया, बाद में सुधा ने उसे इतना ही कहा कि ये उसकी बहन ने अपने बेटे के जन्मदिन पर उसे दिया है....... सुधा के इस झूठ से चंदर को इतना दहला दिया था कि उसने ये निर्णय कर लिया कि सुधा की शादी से पहले वह सुधा का एक एक गिफ्ट उसे दे आयेगा। 

          इधर जिन्दगी एक और रंग लिए सामने आई थी। चंदर के पिता को हॉस्पिटल ले जाना जरुरी था और चंदर इस जवाबदेही से न बचना चाहता था न बच पाया। दो समानांतर रेखाएं खिंची जा चुकी थी और चंदर बीच में था....... एकदम मध्य में जहाँ से वह टस से मस नहीं हो सकता था। चंदर के पापा सुधा के बारे में जानते थे और उन्हें आपत्ती नहीं थी क्यूंकि उन्हें सुधा के जिस पक्ष के बारे में आपत्ति होती वो चंदर ने अपने पापा को बताया ही नहीं था ......  बाई पास सर्जरी के बाद से ताबड़तोड़ एक के बाद एक सदमा उन्होंने बर्दाश्त किया था...... क्या कहता चंदर उनसे?


       जिंदगी का कुछ हिस्सा बाल पत्रिकाओं में छपने वाले उस खेल की तरह होता है ..... जिसमें जीतने के लिए सही रास्ते से बाहर निकलना होता है। चंदर जब भी बचपन में नन्दन, नन्हें सम्राट, सुमन सौरभ, चंपक या किसी अखवारी परिशिष्ट में यह खेल खेलता था और गलत रास्ते पर चलकर आगे फंस जाता था ......  वह दूसरी बार प्रयास भी नहीं करता। आगे बढ़ कर नहीं लौटना उसका कोई उसूल नहीं था बस एक सीख थी जिसे उसने कैसे सिखा था ये उसे भी पता नहीं था। जूनून में आकर काफी कुछ उसने किया था लाइफ में। अपनी बर्बादी का कारण भी उसका जूनून ही था। जिंदगी भी इसी तरह का एक खेल है! जिसमें चंदर ने शायद गलत रास्ता चुन लिया था! इस रास्ते के मुहाने पर कोई फाइव स्टार जाब न होकर एक दर्दनाक करियर था ...... जो वो निभा रहा था...... कभी मन से तो कभी बेमन से। उसने वापस आकर दूसरे रास्ते से अलग मंजिल तलाशने की कोशिश भी की थी लेकिन वो असफल हो गया था। 

       चंदर की कई लोगों से शिकायत थी।लेकिन सबसे ज्यादा अपराधबोध उसका खुद से था कि वह इनसब उलझनों को सुलझा न सका और न ही खुद की नजर में गिरने से खुद को बचा सका। उसे सुधा को खोने का उतना मलाल नहीं था जितना कि मलाल उसे इस बात का था कि सुधा उसके बिना कैसे रहेगी। वह गलत भी था और गलत नहीं भी था...... 


     तुम्हारे न होने के बाद हर जवाब दूसरे जवाब पर सवाल खड़ा करेगा...  और हर सवाल.... हर एक सवाल अपने भीतर कई और नए सवालों को समेटे हुए मेरे सामने आएगा। यह तीसरा पहर होगा, जो मुझे और परिपक्व बनाएगा शायद! तुम बिन!

          

तुम भी एक डायरी थी....


चंदर 

नोट : ये कहानी विशुद्ध रूप से कल्पना पर आधारित है!