गुरुवार, 11 जुलाई 2013

                               आओगे जब तुम साजना....

शादी हो जाती तो कितना अच्छा होता न!! कोई बात करने के लिए मिल जाता.

कई बार ऐसा सोचता हूं कि किसी से शादी कर ली जाए लेकिन फिर चारों तरफ से कई सवालों का एक साथ हमला हो जाता है और हथियार डालकर पीछे हट जाता हूं.

सवर्ण पैदा होना एक शाप की तरह ही है. आपको "स्टेटस" चाहिए और अगर स्टेटस नहीं है तो फिर कोई ऐसा बीमा कवर चाहिए जिसमें आपकी पत्नी का लाइव कवर हो. मन के अंदर से एक आवाज यह भी आती है कि मैं भी अगर किसी बेटी का बाप होता तो वैसा ही सोचता जैसा सब लड़की का बाप सोचता है.

जीने के लिए क्या चाहिए? शरीर को जिलाए रखने के लिए जैसे खाना-पानी और हवा चाहिए वैसे ही दिल को जिलाए रखने के लिए भी तो कुछ चाहिए न!! क्या?

मेट्रो पर किसी जोड़े को देखकर अच्छा लगता है. कितना प्यारा है वो रिश्ता जिस पर हम मरते हैं....

एक आफिस से मिसाइल की तरह दूसरे आफिस में गिरता हूं और फिर लुढ़कते हुए देर रात कमरे पर जाकर बिस्तर से अपने हिस्से की नींद मांगता हूं. कई महीने हो गए नींद आए. नींद नहीं आती है अब.

ऐसा लगता है कभी कभी कि दो जीबी के मेमोरी कार्ड में ढ़ाई जीबी का डाटा डाल दिया हो और सिस्टम हेंग कर रहा हो. दिमाग का सिस्टम ऐसे ही चल रहा है. हेंग पर हेंग होता जा रहा है लेकिन फोरमेट करने के लिए वक्त ही नहीं है.

ग्यानेन्दू ने एक बार फोन पर सच ही कहा था कि कुछ महीनों में घर जाते रहने से दिमाग रिफ्रेश हो जाता है... शायद फार्मेट उसे ही कहते हैं. लेकिन घर जाना अब उतना आसान तो नहीं रहा न!!

उस जिले का वो बस स्टाप याद दिलाता है कि जिस स्टाप पर किसी दिन मैं काफी देर तक किसी के बस का इंतजार कर रहा था और उस यात्री ने मुझे एक चादर, रोटी गरम रखने के लिए एक बर्तन, एक घड़ी और कुछ और सामान दिया था.... नहीं जाना मुझे उस बस स्टाप पर!!

ट्रेन में सफर करने का जो एक्साइटमेंट तब था वो अब नहीं है. सब बेकार है. किसी से किसी तरह का जुड़ाव नहीं है अब.

फिर भी लगता है कि तुम आओगी. हो सकता है कि तुम किसी दोपहर में किसी मेट्रो स्टेशन पर मुझसे टकरा जाओ.... क्या पता तुम किसी रात मुझे फेसबुक पर मिल जाओ.... ये भी हो सकता है कि तुम कभी किसी शादी में मुझे सजी-संवरी हुई मिल जाओ... जो हो लेकिन पता नहीं मैं इस स्वप्न से बाहर नहीं आ पा रहा हूं कि तुम मिलोगी.