बुधवार, 5 दिसंबर 2012

दहन

                                      चुन्नी बाबू का न होना....
 
‘‘चंदर, तुमने जो मीडिया-पथ चुना है उसमें चुनौती तुमसे अप्वाइंटमेंट लेकर नहीं आएगी। शाम के अंधेरे में एक तीखी आक्रामक चुनौती यकायक तुम्हारा रास्ता रोक कर तुम्हें द्वंद्व के लिए ललकारेगी और तुम्हें अपनी सारी क्षमता और मनोबल के साथ उसका सामना करना होगा। विश्वास रखो, पीछे बराबर मैं रहूंगा और हर घात-प्रतिघात पर तुम्हें दिशा -निर्देश दूंगा। पर अगर तुम उस रास्ते से लौटने की सोचने लगो, तो यह उस रास्ते का भी अपमान है और तुम्हारा व मेरा भी!‘‘
यह धिक्कार और किसी की नहीं खुद चंदर की अतंरात्मा की थी।

चंदर ने अगर जिंदगी में एक भी अच्छा काम किया था तो वह था दोस्तों का चयन करते वक्त अतिरिक्त सावधानी बरतना। अगर चंदर सुधा के दिए चोट के बाद देवदास नहीं बना था तो इसका श्रेय उसके गिने चुने दोस्तों को जाता था, जिनमें से कोई भी चुन्नी बाबू जैसे नहीं थे!

सुधा का वो लव लेटर चंदर हर हाल में उस तक सुरक्षित वापस पहुंचाना चाहता था! बीएचयू में पढने वाले उसके दोस्त साकेत ने ही उसे समझाया था कि वह उस लेटर को जला दे क्योंकि अगर लव लेटर किसी के हाथ लग गया तो सुधा की जिंदगी जहन्नुम बन जाएगी।
इधर चंदर के दिमाग में यह चल रहा था कि अगर वो लेटर चंदर के पास रहा तो सुधा यह सोचकर परेशान  रहेगी कि चंदर कुछ गलत न कर दे! सुधा को जवाबी कार्रवाई की आशंका थी, जो उसने शादी की रात चंदर को फोन पर व्यक्त भी किया था.... जब वह सोरी बोली थी। साकेत की मध्यस्थता के बावजूद सुधा का लव लेटर गंतव्य तक नहीं पहुंच पाया!
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महीनों चंदर से मिलने-जुलने और रात-रात भर फोन पर बात करने और चंदर को अपनी शादी के बारे में कुछ न बताने की बजाय अचानक विवाह कर लेना और उसका समाचार एक तीसरे व्यक्ति द्वारा चंदर के पास पहुंचना एक कोमल संबंध की बहुत भौड़ंी, क्रूर परिणती थी। इसे चार-पांच पंक्तियों के एक छोटे से मेल से संभाला जा सकता था, ‘‘प्रिय चंदर, तुम मेरे सबसे निकट हो इसलिए सबसे पहले तुम्हें यह बताना मेरा कर्तव्य है कि मैं एक बैंक पीओ लड़के के साथ परिणय सूत्र में बंध रही हूं। पापा और घरवालों को विश्वास है कि वह मेरी बीमारी का इलाज करा देगा और मुझे वो सभी खुशियाँ देगा जो तुम नहीं दे सकते थे। मेरा और ‘नए चंदर‘ का संबंध जल्दी ही एक सामाजिक रिश्ते में बदल रहा है। वह तारीख 29 नवंबर तय की गई है। हमारा इंगेजमेंट जून में ही हो गया था लेकिन मैं इसे छुपाकर तुमसे मिलती रही। शायद यह गलत था लेकिन तुम्हारे प्यार और अपनापन ने मुझमें गलत और सही के फासले को समझने की क्षमता खत्म कर दी थी। तुम हमेशा  अच्छे बने रहोगे मुझे इसका विश्वास है। हम एक-दूसरे के बच्चों की शादी में जरूर मिलेंगे और तुम्हारे लिए लड़की मैं देखूंगी। शुभकामनाओं के साथ......‘‘ चंदर इस काल्पनिक मेल का मसौदा सोचकर थोड़ी देर शांत  पड़ा रहा और फिर खुद को बहलाने के लिए नोवेल के पन्ने पलटने लगा।

----शिवपालगंज के अपने मुहल्ले में चहलकदमी करते हुए चंदर ऐसा दिख रहा था जैसे किसी आत्मीय का दाह-संस्कार करके लौट रहा हो। सुधा के अनेक स्म्रति चिह्न जलते बुझते रहते थे। सुधा का दुमंजिला मकान सामने आया...... सुधा छत पर कपड़े सुखा रही है और चंदर गली के मोड़ से उसे देख रहा है....... सुधा के छोटे पापा के छोटे छोटे बच्चे उसका दुपट्टा खींच रहे हैं और सुधा सबसे नजर छुपाए बस चंदर को देख रही है....... सुधा नीचे आती है...... उसकी दादी भी साथ है...... गली के मोड़ पर चंदर हिम्मत जुटा कर फ्लाइंग किस देता है..... लेकिन सुधा की नजरें तबतक उससे हट कर अपनी दादी पर चली जाती है.......... सुधा फिर उसे जाने को कहती है....... चंदर बुझे मन से उस संकरी गली को छोड़ जाता है....... और फिर दौर कर वापस आकर सुधा के लिए लाया पर्क चाॅकलेट उसके रेलिंग के अंदर गिरा देता है, जो वह देना भूल ही गया था..... सुधा मुस्कुराती है... फिर शाम ..... रात...... सुबह.... दोपहर....... समय चलता है और 29 नवंबर तक पहुंच जाता है!



सुधा की शादी को चार दिन हो चुके थे.......


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