कितनी बदल गई रेखाएं
सुधा का जन्मदिन बनाने विशेष तौर पर चंदर अपने गांव आया था और यहीं कापरेटिव कालेज में मुंडेर पर बैठकर वह सुधा को बच्चे की तरह समझा रहा था।
चंदर ने ला की तैयारी छोड़ दी थी हालांकि परीक्षा में वह बैठ जाता लेकिन उसकी प्राथमिकता अब आत्मनिर्भर होने की थी ताकि सुधा के पापा उसकी शादी उससे कराने को राजी हो जाएं। सुधा ने भी चंदर को वादा दे दिया था कि वह शादी के बाद अपने पैसे से चंदर को ला करवाके ही दम लेगी। चंदर दिल्ली लौटने से पहले जब सुधा को ये सब समझा रहा था तो सुधा बस एकटक उसे देख रही थी। आखिरकार गाइड बंद करके चंदर ने उसे कहा था कि पहले तुम जीभर कर मुझे देख लो फिर करियर को लेकर बाद में बात करेंगे! इसके बाद चंदर ने अपनी वो गाइड सुधा को दे दी थी, दिल्ली वापस आकर चंदर ने बेरसराय के जवाहर बुक डिपो से दूसरी गाइड खरीद ली।
सुधा की शादी को दो दिन हो गए थे और चंदर ने इन दो दिनों में खाने के नाम पर छठ पूजा के प्रसाद के अलावा कुछ कौर भात खाया था। थाली आती और चंदर भोग लगाकर उसे लौटा देता। सुधा का इस तरह अपनी शादी की बात छुपाना चंदर को रूलाता, तड़पाता, विचलित करता और आखिर में चंदर को विस्तर पर पटक कर सुबकने के लिए छोड़ देता।
चंदर अब भी यह मानने के लिए राजी नहीं था कि सुधा ने उसके साथ कुछ भी गलत किया। सुधा ने जो किया मजबूरी और बेबसी में किया, वह अब भी यही सोचता था..... लेकिन फिर सुधा ने शादी की रात उससे साफ आवाज में माफी क्यूं मांगी.....! चंदर ने तब उसे अभयदान दे दिया था यह सोचकर कि कहीं सुधा की शादी न टूट जाए!
तसलीमा नसरीन, सुरेन्द्र वर्मा लिखित ‘‘मुझे चांद चाहिए‘‘ की वर्शा वशिष्ठ उर्फ सिलबिल, भारत पाकिस्तान बंटवारे के समय जेनिव की बूटा सिंह से बेवफाई की दर्दनाक कथा, 1084वें की मां में सुजाता का विद्रोह सहित कई उपन्यासों के पात्र के बारे में वह सोचता और फिर बार बार अलग अलग निष्कर्षों पर पहुंचता........लेकिन इनमे भी सुधा का दोष कहीं नहीं होता।
सुधा के ‘‘नए चंदर‘‘ का परिवार समृद्ध था। नए चंदर के पिता रिटायर हो चुके थे और उसके दोनों बड़े भाई अच्छी जगह सरकारी नौकरी में थे। चंदर के बार बार तड़पने और बिलखने की गूंज से सुधा अब मुक्त हो चुकी थी। सुधा को अब न कोई ‘‘द हिन्दू‘‘ खरीदकर पढने को कहेगा और न कोई बार-बार यह समझाएगा कि कार्ल मार्क्स ने औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन क्यूं कहा था! सुधा अब सिर्फ खुश रहेगी और उसे वो हर ख़ुशी मिलेगी जो उसके लिए ख़ुशी थी। समय के साथ वह खुद को इस अपराधबोध से भी मुक्त कर पाएगी जिसके लिए उसने चंदर को अपनी शादी की रात फोन पर साॅरी कहा था........ लेकिन चंदर क्या करेगा, कैसे करेगा और क्या कर पाएगा? कैसे भूलाएगा वो उसकी उस फुसफुसाहट को जो सुधा रात में उसके कानों में करती थी फोन पर ताकि बगल वाले कमरे में कोई सुन न ले कि वह देर रात किसी से फोन पर बात करती है? कैसे भूलाएगा वह अपना वह गुस्सा जो वह सुधा पर निकालता था, जब सुधा रात में बात करते करते सो जाती थी और चंदर इस ओर बकबकाता रह जाता था! कई बार तो चंदर खीझ जाता था, लेकिन फिर भी सुधा की ख़ुशी और जिंदगी उसके लिए सबकुछ हो चुकी थी, खासकर तब जब एक रात चंदर को उसने फोन पर कहा था कि ‘‘मेरी जिंदगी ज्यादा बड़ी नहीं है!‘‘
छह साल तक लीव-इन-रिलेशनशिप में रहने के बाद यूपीएससी का फोर्थ एटेम्प्ट मिस कर देने की सजा आशीष को जो मिली थी चंदर की सजा उससे बहुत कम थी। आशीष और उसकी प्रमिका ने कमरे में मोमबत्ती जलाकर सात फेरे भी लिए थे और उसके बाद दोनों उस दिन को शादी की सालगिरह के रूप में मनाते भी थे। दिल्ली के मुखर्जी नगर में एक और सुधा और एक और चंदर की कथा इस समय चंदर के लिए मरहम थी। स्मिता के कहने पर ही आशीष ने चौथा एटेम्प्ट तैयारी से संतुष्टि न होने के बावजूद दिया था क्योंकि स्मिता उससे शादी करने की जल्दीबाजी कर रही थी। आखिर में स्मिता ने किसी और लड़के से शादी कर ली और अपना प्यार का प्रमाण देने के लिए जाते जाते एक बार आशीष के साथ हमविस्तर हो गई।
दूसरी कहानी जमशेदपुर के अभिनव की थी, जिसने सीआरपीएफ में चयन होने के बाद गाँव की ही एक लड़की से शादी कर ली और उसकी गर्लफ्रैंड को इसका पता तब चला जब उसने अभिनव और उसकी पत्नी की फोटो फेसबुक पर देखी। उसकी गर्लफ्रैंड ने दक्षिणी दिल्ली के एक अरूणा आसिफ अली मार्ग पर स्थित मेजबान रेस्तरां में चंदर को बताया था कि अभिनव ने उससे शादी का वादा किया था। चंदर तब अंदर से भींग गया था। आज वह अभिनव की जगह पर सुधा को उसकी गर्लफ्रैंड की जगह पर खुद को देख रहा था, यह जानते हुए भी कि सच्चाई यह नहीं है।
इन दो कहानियों से चंदर इस निष्कर्ष पर पहुंचने लगा था कि हो सकता है अगर वह अपने लक्ष्य को पा लेता तो वह सुधा की बजाय किसी और से शादी कर लेता। अगर आशीष के असफल होने पर उसकी प्रेमिका उसे छोड़ सकती है और अभिनव सफल होने पर अपनी प्रमिका को छोड़ सकता है तो फिर इसकी क्या गारंटी है कि वह सुधा के साथ धोखा नहीं करता!
खुद को दोष देकर और खुद पर शक करने के बाद भी चंदर सुधा को भुला नहीं पा रहा था।
‘‘देखो रोज एक सेट बनाना बस... एक बार बैठना तो अधिक से अधिक दो बार ही उठना...... और हां अपना मोबाइल बंद रखना‘‘
‘‘...........‘‘
‘‘मैं भी जेनरल कम्पीटीशन में अब से ट्राई करूंगा, मेरी मेथमेटिक्स कमजोर है.....तुम मुझे मेथ्स बता देना और मैं तुम्हें इंग्लिश और जीएस करवाता रहूंगा....... तुम चिंता रत्ती भर भी मत करना"
‘‘............‘‘
चंदर ने ला की तैयारी छोड़ दी थी हालांकि परीक्षा में वह बैठ जाता लेकिन उसकी प्राथमिकता अब आत्मनिर्भर होने की थी ताकि सुधा के पापा उसकी शादी उससे कराने को राजी हो जाएं। सुधा ने भी चंदर को वादा दे दिया था कि वह शादी के बाद अपने पैसे से चंदर को ला करवाके ही दम लेगी। चंदर दिल्ली लौटने से पहले जब सुधा को ये सब समझा रहा था तो सुधा बस एकटक उसे देख रही थी। आखिरकार गाइड बंद करके चंदर ने उसे कहा था कि पहले तुम जीभर कर मुझे देख लो फिर करियर को लेकर बाद में बात करेंगे! इसके बाद चंदर ने अपनी वो गाइड सुधा को दे दी थी, दिल्ली वापस आकर चंदर ने बेरसराय के जवाहर बुक डिपो से दूसरी गाइड खरीद ली।
सुधा की शादी को दो दिन हो गए थे और चंदर ने इन दो दिनों में खाने के नाम पर छठ पूजा के प्रसाद के अलावा कुछ कौर भात खाया था। थाली आती और चंदर भोग लगाकर उसे लौटा देता। सुधा का इस तरह अपनी शादी की बात छुपाना चंदर को रूलाता, तड़पाता, विचलित करता और आखिर में चंदर को विस्तर पर पटक कर सुबकने के लिए छोड़ देता।
चंदर अब भी यह मानने के लिए राजी नहीं था कि सुधा ने उसके साथ कुछ भी गलत किया। सुधा ने जो किया मजबूरी और बेबसी में किया, वह अब भी यही सोचता था..... लेकिन फिर सुधा ने शादी की रात उससे साफ आवाज में माफी क्यूं मांगी.....! चंदर ने तब उसे अभयदान दे दिया था यह सोचकर कि कहीं सुधा की शादी न टूट जाए!
तसलीमा नसरीन, सुरेन्द्र वर्मा लिखित ‘‘मुझे चांद चाहिए‘‘ की वर्शा वशिष्ठ उर्फ सिलबिल, भारत पाकिस्तान बंटवारे के समय जेनिव की बूटा सिंह से बेवफाई की दर्दनाक कथा, 1084वें की मां में सुजाता का विद्रोह सहित कई उपन्यासों के पात्र के बारे में वह सोचता और फिर बार बार अलग अलग निष्कर्षों पर पहुंचता........लेकिन इनमे भी सुधा का दोष कहीं नहीं होता।
सुधा के ‘‘नए चंदर‘‘ का परिवार समृद्ध था। नए चंदर के पिता रिटायर हो चुके थे और उसके दोनों बड़े भाई अच्छी जगह सरकारी नौकरी में थे। चंदर के बार बार तड़पने और बिलखने की गूंज से सुधा अब मुक्त हो चुकी थी। सुधा को अब न कोई ‘‘द हिन्दू‘‘ खरीदकर पढने को कहेगा और न कोई बार-बार यह समझाएगा कि कार्ल मार्क्स ने औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन क्यूं कहा था! सुधा अब सिर्फ खुश रहेगी और उसे वो हर ख़ुशी मिलेगी जो उसके लिए ख़ुशी थी। समय के साथ वह खुद को इस अपराधबोध से भी मुक्त कर पाएगी जिसके लिए उसने चंदर को अपनी शादी की रात फोन पर साॅरी कहा था........ लेकिन चंदर क्या करेगा, कैसे करेगा और क्या कर पाएगा? कैसे भूलाएगा वो उसकी उस फुसफुसाहट को जो सुधा रात में उसके कानों में करती थी फोन पर ताकि बगल वाले कमरे में कोई सुन न ले कि वह देर रात किसी से फोन पर बात करती है? कैसे भूलाएगा वह अपना वह गुस्सा जो वह सुधा पर निकालता था, जब सुधा रात में बात करते करते सो जाती थी और चंदर इस ओर बकबकाता रह जाता था! कई बार तो चंदर खीझ जाता था, लेकिन फिर भी सुधा की ख़ुशी और जिंदगी उसके लिए सबकुछ हो चुकी थी, खासकर तब जब एक रात चंदर को उसने फोन पर कहा था कि ‘‘मेरी जिंदगी ज्यादा बड़ी नहीं है!‘‘
छह साल तक लीव-इन-रिलेशनशिप में रहने के बाद यूपीएससी का फोर्थ एटेम्प्ट मिस कर देने की सजा आशीष को जो मिली थी चंदर की सजा उससे बहुत कम थी। आशीष और उसकी प्रमिका ने कमरे में मोमबत्ती जलाकर सात फेरे भी लिए थे और उसके बाद दोनों उस दिन को शादी की सालगिरह के रूप में मनाते भी थे। दिल्ली के मुखर्जी नगर में एक और सुधा और एक और चंदर की कथा इस समय चंदर के लिए मरहम थी। स्मिता के कहने पर ही आशीष ने चौथा एटेम्प्ट तैयारी से संतुष्टि न होने के बावजूद दिया था क्योंकि स्मिता उससे शादी करने की जल्दीबाजी कर रही थी। आखिर में स्मिता ने किसी और लड़के से शादी कर ली और अपना प्यार का प्रमाण देने के लिए जाते जाते एक बार आशीष के साथ हमविस्तर हो गई।
दूसरी कहानी जमशेदपुर के अभिनव की थी, जिसने सीआरपीएफ में चयन होने के बाद गाँव की ही एक लड़की से शादी कर ली और उसकी गर्लफ्रैंड को इसका पता तब चला जब उसने अभिनव और उसकी पत्नी की फोटो फेसबुक पर देखी। उसकी गर्लफ्रैंड ने दक्षिणी दिल्ली के एक अरूणा आसिफ अली मार्ग पर स्थित मेजबान रेस्तरां में चंदर को बताया था कि अभिनव ने उससे शादी का वादा किया था। चंदर तब अंदर से भींग गया था। आज वह अभिनव की जगह पर सुधा को उसकी गर्लफ्रैंड की जगह पर खुद को देख रहा था, यह जानते हुए भी कि सच्चाई यह नहीं है।
इन दो कहानियों से चंदर इस निष्कर्ष पर पहुंचने लगा था कि हो सकता है अगर वह अपने लक्ष्य को पा लेता तो वह सुधा की बजाय किसी और से शादी कर लेता। अगर आशीष के असफल होने पर उसकी प्रेमिका उसे छोड़ सकती है और अभिनव सफल होने पर अपनी प्रमिका को छोड़ सकता है तो फिर इसकी क्या गारंटी है कि वह सुधा के साथ धोखा नहीं करता!
खुद को दोष देकर और खुद पर शक करने के बाद भी चंदर सुधा को भुला नहीं पा रहा था।
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