अगस्त का वो महीना...
चंदर और सुधा एक दूसरे से मिलने के लिए मौके की ताक में रहते थे। दोनों शिवपालगंज के ही रहने वाले थे लेकिन सुधा के पिता जी के तबादले के कारण सुधा अब मजबूर शहर में रहने लगी थी। मजबूर शहर चंदर के लिए एकदम परिचित था और इसकी वजह चंदर की उस शहर में कई रिश्तेदारियां थी। जिस दिन सुधा को उसके पापा के तबादले की खबर मिली थी, उस दिन सुधा ने चंदर को मैसेज किया था- ‘‘आई एम सेड‘‘, चंदर ने जब फोन किया तो सुधा ने सुबकते हुए कहा था उसके पिता का शिवपालगंज में आॅफिस के बाॅस से खटपट हो गई है और उन्होंने चिढ से उसके पापा का तबादला मजबूर शहर में कर दिया है।
रक्षाबंधन का दिन दोनों ने मुलाकात के लिए तय किया था! दरअसल चंदर की दो बहनें मजबूर शहर में ही रहतीं थी और चंदर का सुधा को चारपहिए पर घुमाने का बड़ा मन था। एक ओर जहां शिवपालगंज में चंदर को गाड़ी किराए पर लेनी पड़ती वहीं मजबूर शहर में उसकी दोनों बहनों के बाद अपनी गाड़ी थी और चंदर का यह सपना कुछ झूठ बोलकर पूरा हो सकता था।
चंदर के लिए अगस्त की वो रात ऐतिहासिक थी जब उसने गलती से सुधा की जगह उसकी बहन से फोन पर बात कर लिया था! पांच अगस्त को आॅफिस से थका हुआ चंदर कमरे पर लौट रहा था इसी दौरान उसे बदमाशी सूझी और उसने पियक्कर की एक्टिंग करते हुए सुधा को फोन लगा दिया। चंदर को अपनी शरारत की ऐसी सजा मिली कि उसे सुधा की बहन को दुबारा फोन करके यकीन दिलाना पड़ा कि उसने शराब को कभी हाथ तक नहीं लगाया है! पहली बार फोन काटने के बाद चंदर को एहसास हुआ था कि उसने सुधा की बजाय किसी और से बात कर ली है.... जब सुधा की बहन ने उससे पूछा था कि तुम्हारी जाति क्या है! कुछ देर तक तो चंदर हंसते हंसते लोटपोट हुआ था फिर सुधा की फजीहत के बारे में सोचते हुए उसने उसकी चश्मिश बहन ने क्षमायाचना किया था। सुधा की उस चश्मिश बहन से चंदर को माफ किया या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन अलबत्ता उसने घर में ढिंढोरा पीट दिया और चंदर की शरारत की सजा बेचारी सुधा को भुगतनी पड़ी और फिर जो उसका मोबाइल घरवालों ने छीना तो सुधा को उसे वापस पाने के लिए ‘‘भागीरथ प्रयत्न‘‘ करना पड़ा।
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दो दिन बाद ही सुधा के घर में मची हलचल ने नया रंग जमाया और सुधा ने चंदर को बैंक पीओ बनने का नोटिस जारी करके एक साल की मोहलत दे दी। चंदर के लिए बैंक पीओ बनना उसी तरह था जिस तरह बरखा दत्त के लिए फैशन डिजाइनर बनना! अचानक सुधा के इस रूप को देखकर जबतक चंदर अपनी स्थिति को नाॅर्मल करता इससे पहले ही दूसरा तीर आ लगा। हुआ यूं कि रात में काफी देर तक रिंग होते रहने से खीझ कर जब ंचंदर ने उससे फोन न लेने का कारण पूछा तो सुधा ने मासूमियत से कहा कि वह पापा के साथ धड़कन मूवी देख रही है। चंदर का बस चलता तो वह धड़कन मूवी को बैन कर देता या फिर फिल्म का पूरा फोकस सुनील शेट्ठी की मां पर कर देता। उसके अनुसार यह मूवी डायरेक्टर ने शायद अपनी बेटी के भाग जाने के फ्रस्ट्रेशन में बनाई होगी! सुधा का यह कहना कि धड़कन उसके पापा की फेवरेट मूवी है, ने चंदर को अपना भविष्य दिखला दिया था उपर से सुधा भी अपने पापा को इंडोर्स कर रही थी। चंदर ने उस रात उसे बुरी तरह डांटा था कि वह सिनेमा विनेमा छोड़ कर पढाई पर ध्यान दे और ऐसा बनकर दिखाए कि उसके पापा को उसके लिए एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़े। चंदर चाहता था कि वह खुद को इस मुकाम पर पहुंचा ले कि वह उसके परिवार को पसंद आ जाए और फिर चंदर दहेज माफ कर उनके दिल में बस जाए। सुधा उसे अक्सर बताती थी कि उसकी चचेरी बहन के लिए लड़के वाले ही उसके दरवाजे पर आए थे और फिर कहती कि उसकी चचेरी बहन टाटा सफारी से आती है! चंदर सुधा के इस सपने को साकार नहीं कर सका इसका मलाल लिए उसे जिंदगी भर जीना होगा!
13 अगस्त की उस शाम को चंदर कभी नहीं भूल पाएगा जब उसने सुधा को बाइक पर मजबूर शहर से दूर एक एकांत में घुमाने लाया था। सुधा को गोद में लेकर उसने उसे फिल्मी स्टाइल में किस किया था..... सुधा पहले शर्मा गई थी लेकिन फिर दोनों एक दूसरे के साथ लिपट गए थे। आम के पेड़ के ओट में एक नए रिश्ते पनप रहे थे जिन्हें 29 नवंबर को हमेशा हमेशा के लिए अलग होने की सजा सहर्ष स्वीकार करनी थी। इस किस के कुछ ही दिनों बाद चंदर ने सुधा के लिए एलआईसी का एक बीमा लिया था ताकि वह सुधा का इलाज करवा सके। उसने सुधा को यह बताया नहीं था क्योंकि वह सुधा को सरप्राइज करना चाहता था लेकिन सुधा ने उसे अपने इंगेजमेंट के बारे में नहीं बताकर और उसे धोखे में रखकर जिस तरह उसके साथ छल किया था इसके बाद चंदर को इस बात का पछतावा नहीं रहा कि उसने सुधा को उस एलआईसी की जानकारी नहीं दी।
लगातार तीन दिनों तक चंदर अलग अलग गाडि़यों से सुधा को घुमाता रहा। इस बीच वे मंदिर भी गए जहां सुधा ने चंदर का गुल्लक फोड़ा। चंदर यू ंतो रूप्ये अपने बैंक अकाउंट में जमा करता था लेकिन गुल्लक फोड़ते वक्त सुधा के चेहरे की रूहानी हंसी से उसे इतना कायल कर दिया था कि वह दिल्ली में एक गुल्लक में रूप्ये जमा करता और जब शिवपालगंज या मजबूर शहर आता तो सुधा से गुल्लक फोड़वाता।
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इन तीन दिनों में एक मजेदार वाक्या हुआ। दरअसल, चंदर ने इन तीन दिनों में अपने रिश्तेदार को झूठ बोलकर उनकी बाइक बारी बारी से सुधा को घुमाने के लिए लाता था। बाइक पर घूमना सुधा को काफी पसंद था और उसकी पसंद को पूरा करने की कीमत अपने भैया से रिश्ता खराब करने के रूप् में चुकानी पड़ी। एक दिन जब वह और सुधा बाइक पर चिपक कर तेजी से एयरफोर्स क्वार्टर के पास से गुजरे थे तभी किसी स्टाफ की नजर गाड़ी के नेम प्लेट पर पड़ गई और फिर जितना बुरा हो सकता था हुआ। मजबूर शहर में जब वह भैया के कमरे पर आया तो उसका टिकट और सामान दरवाजे पर ही रखा था! चंदर ने खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि उसे अगर दुनिया में सबसे अधिक डर लगता था तो अपने भैया से और रंगेहाथ धराने के बाद वह अपना पक्ष रखता भी तो क्या रखता! चंदर मजबूर शहर से शिवपालगंज होते हुए वापस अपनी दिल्ली आ गया था।
इसके बाद चंदर और सुधा को 23 अगस्त को अपनी ‘‘शादी‘‘ की सालगिरह मनाने मजबूर शहर में मनाने के सपने से संतोष कर लेना पड़ा। फोन पर ही दोनों से 23 अगस्त को याद किया जब वे एक दूसरे से जुड़े थे और जुड़ते चले गए थे जबतक कि समय ने निर्दयता पूर्वक इन्हें अलग नहीं किया था!
सुधा की शादी को आज तीन दिन हो गए थे! अब चंदर अपनी डायरी के 16 अगस्त के पन्नों को पढ रहा था जब सुधा ने उसे कहा था कि वह अगर उसे पाना चाहता है तो हर गुरूवार को साईं बाबा के मंदिर जाए.....!
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चंदर और सुधा एक दूसरे से मिलने के लिए मौके की ताक में रहते थे। दोनों शिवपालगंज के ही रहने वाले थे लेकिन सुधा के पिता जी के तबादले के कारण सुधा अब मजबूर शहर में रहने लगी थी। मजबूर शहर चंदर के लिए एकदम परिचित था और इसकी वजह चंदर की उस शहर में कई रिश्तेदारियां थी। जिस दिन सुधा को उसके पापा के तबादले की खबर मिली थी, उस दिन सुधा ने चंदर को मैसेज किया था- ‘‘आई एम सेड‘‘, चंदर ने जब फोन किया तो सुधा ने सुबकते हुए कहा था उसके पिता का शिवपालगंज में आॅफिस के बाॅस से खटपट हो गई है और उन्होंने चिढ से उसके पापा का तबादला मजबूर शहर में कर दिया है।
रक्षाबंधन का दिन दोनों ने मुलाकात के लिए तय किया था! दरअसल चंदर की दो बहनें मजबूर शहर में ही रहतीं थी और चंदर का सुधा को चारपहिए पर घुमाने का बड़ा मन था। एक ओर जहां शिवपालगंज में चंदर को गाड़ी किराए पर लेनी पड़ती वहीं मजबूर शहर में उसकी दोनों बहनों के बाद अपनी गाड़ी थी और चंदर का यह सपना कुछ झूठ बोलकर पूरा हो सकता था।
चंदर के लिए अगस्त की वो रात ऐतिहासिक थी जब उसने गलती से सुधा की जगह उसकी बहन से फोन पर बात कर लिया था! पांच अगस्त को आॅफिस से थका हुआ चंदर कमरे पर लौट रहा था इसी दौरान उसे बदमाशी सूझी और उसने पियक्कर की एक्टिंग करते हुए सुधा को फोन लगा दिया। चंदर को अपनी शरारत की ऐसी सजा मिली कि उसे सुधा की बहन को दुबारा फोन करके यकीन दिलाना पड़ा कि उसने शराब को कभी हाथ तक नहीं लगाया है! पहली बार फोन काटने के बाद चंदर को एहसास हुआ था कि उसने सुधा की बजाय किसी और से बात कर ली है.... जब सुधा की बहन ने उससे पूछा था कि तुम्हारी जाति क्या है! कुछ देर तक तो चंदर हंसते हंसते लोटपोट हुआ था फिर सुधा की फजीहत के बारे में सोचते हुए उसने उसकी चश्मिश बहन ने क्षमायाचना किया था। सुधा की उस चश्मिश बहन से चंदर को माफ किया या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन अलबत्ता उसने घर में ढिंढोरा पीट दिया और चंदर की शरारत की सजा बेचारी सुधा को भुगतनी पड़ी और फिर जो उसका मोबाइल घरवालों ने छीना तो सुधा को उसे वापस पाने के लिए ‘‘भागीरथ प्रयत्न‘‘ करना पड़ा।
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दो दिन बाद ही सुधा के घर में मची हलचल ने नया रंग जमाया और सुधा ने चंदर को बैंक पीओ बनने का नोटिस जारी करके एक साल की मोहलत दे दी। चंदर के लिए बैंक पीओ बनना उसी तरह था जिस तरह बरखा दत्त के लिए फैशन डिजाइनर बनना! अचानक सुधा के इस रूप को देखकर जबतक चंदर अपनी स्थिति को नाॅर्मल करता इससे पहले ही दूसरा तीर आ लगा। हुआ यूं कि रात में काफी देर तक रिंग होते रहने से खीझ कर जब ंचंदर ने उससे फोन न लेने का कारण पूछा तो सुधा ने मासूमियत से कहा कि वह पापा के साथ धड़कन मूवी देख रही है। चंदर का बस चलता तो वह धड़कन मूवी को बैन कर देता या फिर फिल्म का पूरा फोकस सुनील शेट्ठी की मां पर कर देता। उसके अनुसार यह मूवी डायरेक्टर ने शायद अपनी बेटी के भाग जाने के फ्रस्ट्रेशन में बनाई होगी! सुधा का यह कहना कि धड़कन उसके पापा की फेवरेट मूवी है, ने चंदर को अपना भविष्य दिखला दिया था उपर से सुधा भी अपने पापा को इंडोर्स कर रही थी। चंदर ने उस रात उसे बुरी तरह डांटा था कि वह सिनेमा विनेमा छोड़ कर पढाई पर ध्यान दे और ऐसा बनकर दिखाए कि उसके पापा को उसके लिए एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़े। चंदर चाहता था कि वह खुद को इस मुकाम पर पहुंचा ले कि वह उसके परिवार को पसंद आ जाए और फिर चंदर दहेज माफ कर उनके दिल में बस जाए। सुधा उसे अक्सर बताती थी कि उसकी चचेरी बहन के लिए लड़के वाले ही उसके दरवाजे पर आए थे और फिर कहती कि उसकी चचेरी बहन टाटा सफारी से आती है! चंदर सुधा के इस सपने को साकार नहीं कर सका इसका मलाल लिए उसे जिंदगी भर जीना होगा!
13 अगस्त की उस शाम को चंदर कभी नहीं भूल पाएगा जब उसने सुधा को बाइक पर मजबूर शहर से दूर एक एकांत में घुमाने लाया था। सुधा को गोद में लेकर उसने उसे फिल्मी स्टाइल में किस किया था..... सुधा पहले शर्मा गई थी लेकिन फिर दोनों एक दूसरे के साथ लिपट गए थे। आम के पेड़ के ओट में एक नए रिश्ते पनप रहे थे जिन्हें 29 नवंबर को हमेशा हमेशा के लिए अलग होने की सजा सहर्ष स्वीकार करनी थी। इस किस के कुछ ही दिनों बाद चंदर ने सुधा के लिए एलआईसी का एक बीमा लिया था ताकि वह सुधा का इलाज करवा सके। उसने सुधा को यह बताया नहीं था क्योंकि वह सुधा को सरप्राइज करना चाहता था लेकिन सुधा ने उसे अपने इंगेजमेंट के बारे में नहीं बताकर और उसे धोखे में रखकर जिस तरह उसके साथ छल किया था इसके बाद चंदर को इस बात का पछतावा नहीं रहा कि उसने सुधा को उस एलआईसी की जानकारी नहीं दी।
लगातार तीन दिनों तक चंदर अलग अलग गाडि़यों से सुधा को घुमाता रहा। इस बीच वे मंदिर भी गए जहां सुधा ने चंदर का गुल्लक फोड़ा। चंदर यू ंतो रूप्ये अपने बैंक अकाउंट में जमा करता था लेकिन गुल्लक फोड़ते वक्त सुधा के चेहरे की रूहानी हंसी से उसे इतना कायल कर दिया था कि वह दिल्ली में एक गुल्लक में रूप्ये जमा करता और जब शिवपालगंज या मजबूर शहर आता तो सुधा से गुल्लक फोड़वाता।
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इन तीन दिनों में एक मजेदार वाक्या हुआ। दरअसल, चंदर ने इन तीन दिनों में अपने रिश्तेदार को झूठ बोलकर उनकी बाइक बारी बारी से सुधा को घुमाने के लिए लाता था। बाइक पर घूमना सुधा को काफी पसंद था और उसकी पसंद को पूरा करने की कीमत अपने भैया से रिश्ता खराब करने के रूप् में चुकानी पड़ी। एक दिन जब वह और सुधा बाइक पर चिपक कर तेजी से एयरफोर्स क्वार्टर के पास से गुजरे थे तभी किसी स्टाफ की नजर गाड़ी के नेम प्लेट पर पड़ गई और फिर जितना बुरा हो सकता था हुआ। मजबूर शहर में जब वह भैया के कमरे पर आया तो उसका टिकट और सामान दरवाजे पर ही रखा था! चंदर ने खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि उसे अगर दुनिया में सबसे अधिक डर लगता था तो अपने भैया से और रंगेहाथ धराने के बाद वह अपना पक्ष रखता भी तो क्या रखता! चंदर मजबूर शहर से शिवपालगंज होते हुए वापस अपनी दिल्ली आ गया था।
इसके बाद चंदर और सुधा को 23 अगस्त को अपनी ‘‘शादी‘‘ की सालगिरह मनाने मजबूर शहर में मनाने के सपने से संतोष कर लेना पड़ा। फोन पर ही दोनों से 23 अगस्त को याद किया जब वे एक दूसरे से जुड़े थे और जुड़ते चले गए थे जबतक कि समय ने निर्दयता पूर्वक इन्हें अलग नहीं किया था!
सुधा की शादी को आज तीन दिन हो गए थे! अब चंदर अपनी डायरी के 16 अगस्त के पन्नों को पढ रहा था जब सुधा ने उसे कहा था कि वह अगर उसे पाना चाहता है तो हर गुरूवार को साईं बाबा के मंदिर जाए.....!
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