संवेदना सो चुकी थी.....
आखिरकार, शादी के पांच दिनों बाद चंदर की रणनीति काम आ गई और उसकी सुधा से बात हो गई। सुधा अपने भाई की शादी में शिवपालगंज आई हुई थी और उसके छोटे भाई अनिकेत को विश्वास में लेकर चंदर ने इस योजना को अंजाम दिया था। अनिकेत का विश्वास जीतने के लिए उसने पहले तो उसे हल्की सी धमकी देकर मुलाकात की और फिर उसे सुधा का दिया सबकुछ लौटा दिया।
अनिकेत समझदार निकला। उसने चंदर को बोलने का पूरा मौका दिया और सामान्य लहजे में मध्यवर्गीय परिवार की मजबूरी बता दी। चंदर ने उसके हाथों ही सुधा के प्रेम पत्र की होली जला दी ताकि सुधा कहीं इस चिंता में न रहे कि चंदर उसे कभी ब्लैकमेल करेगा!
सुधा पहली बार तो फोन पर आने को राजी नहीं हुई लेकिन अनिकेत ने उसे आखिरकार तैयार कर लिया था। चंदर ने सुधा को सवाल करने का पूरा मौका दिया और बातचीत की शुरुआत उसने माफी से की जो शादी की रात हुई बातचीत के दौरान आक्रोश में आकर कभी बात न करने की कसम के लिए थी। करीब आधे ंघंटे की बातचीत में सबसे दिलचस्प यह रहा कि सुधा चंदर के सवालों का सीधा जवाब देने से बचती रही वहीं चंदर उसे सवाल उठाने के लिए ललकारते रहा। बातचीत के बीच विश्वास, आस्था, रूप्यों का घमंड और सच्चे प्यार जैसे शब्दों ने जगह बनाई और आखिरकार चंदर बातचीत के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सुधा को अपने किये पर पछतावा नहीं है। सुधा की एक दोस्त सोनम में एक बार चंदर को बताया था कि सुधा काम निकलने तक ही लोगों से मतलब रखती है। जब सुधा स्किन डिजीज से ग्रस्त थी तो सोनम ने उसकी बैशाखी की भूमिका निभाई थी इसके बदले सोनम को सुधा का थेंक्स तक नहीं मिल पाया था!! सुधा चंदर को अब आप कहकर संबोधित कर रही थी और काफी निश्चिन्त दिख रही थी। मानो सिंदूरदान के बाद लड़की वाले निश्चिन्त हो जाते हैं कि अब तो शादी हो गई! चंदर इसे समझ रहा था लेकिन उसका इमोशनल जुड़ाव उसे अब भी उस सुधा की ओर खींचता था, जो कभी उससे शायद प्यार करती थी।
आखिरकार, शादी के पांच दिनों बाद चंदर की रणनीति काम आ गई और उसकी सुधा से बात हो गई। सुधा अपने भाई की शादी में शिवपालगंज आई हुई थी और उसके छोटे भाई अनिकेत को विश्वास में लेकर चंदर ने इस योजना को अंजाम दिया था। अनिकेत का विश्वास जीतने के लिए उसने पहले तो उसे हल्की सी धमकी देकर मुलाकात की और फिर उसे सुधा का दिया सबकुछ लौटा दिया।
अनिकेत समझदार निकला। उसने चंदर को बोलने का पूरा मौका दिया और सामान्य लहजे में मध्यवर्गीय परिवार की मजबूरी बता दी। चंदर ने उसके हाथों ही सुधा के प्रेम पत्र की होली जला दी ताकि सुधा कहीं इस चिंता में न रहे कि चंदर उसे कभी ब्लैकमेल करेगा!
सुधा पहली बार तो फोन पर आने को राजी नहीं हुई लेकिन अनिकेत ने उसे आखिरकार तैयार कर लिया था। चंदर ने सुधा को सवाल करने का पूरा मौका दिया और बातचीत की शुरुआत उसने माफी से की जो शादी की रात हुई बातचीत के दौरान आक्रोश में आकर कभी बात न करने की कसम के लिए थी। करीब आधे ंघंटे की बातचीत में सबसे दिलचस्प यह रहा कि सुधा चंदर के सवालों का सीधा जवाब देने से बचती रही वहीं चंदर उसे सवाल उठाने के लिए ललकारते रहा। बातचीत के बीच विश्वास, आस्था, रूप्यों का घमंड और सच्चे प्यार जैसे शब्दों ने जगह बनाई और आखिरकार चंदर बातचीत के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सुधा को अपने किये पर पछतावा नहीं है। सुधा की एक दोस्त सोनम में एक बार चंदर को बताया था कि सुधा काम निकलने तक ही लोगों से मतलब रखती है। जब सुधा स्किन डिजीज से ग्रस्त थी तो सोनम ने उसकी बैशाखी की भूमिका निभाई थी इसके बदले सोनम को सुधा का थेंक्स तक नहीं मिल पाया था!! सुधा चंदर को अब आप कहकर संबोधित कर रही थी और काफी निश्चिन्त दिख रही थी। मानो सिंदूरदान के बाद लड़की वाले निश्चिन्त हो जाते हैं कि अब तो शादी हो गई! चंदर इसे समझ रहा था लेकिन उसका इमोशनल जुड़ाव उसे अब भी उस सुधा की ओर खींचता था, जो कभी उससे शायद प्यार करती थी।
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