सफलता एक फीलिंग है बच्चों!
डाॅ भगवान प्रसाद सिन्हा वो पांचवे आदमी थे जिससे चंदर ने स्टेटस के बारे में पूछा था.... अपना स्टेटस...... उसका अपना वजूद...... पहचान.... और वो सब जो सुधा के भैया ने चंदर के जीजाजी को सुधा की शादी की रात मजबूर शहर में कही थी। चंदर सुधा को अगर भूला भी दे तो उस ताने को भुलाना उसके लिए असंभव सा था जो उसे सुधा के भाई ने अप्रत्यक्ष रूप से दी थी! ‘‘उसका स्टेटस ही क्या है!‘‘ कहा था सुधा के भाई ने चंदर के जीजाजी से। चंदर के भाई की शादी पांच दिसम्बर को एक बैंक पीओ लड़की के साथ ठीक हुई थी।
चंदर भगवान बाबू के उन छात्रों में था, जिनकी चर्चा उन्होंने इतने लोगों से की थी कि चंदर को शिवपालगंज में नाम से कई लोग पहचानने लगे थे। सुधा को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चंदर ने एक बार उसे भी भगवान बाबू के यहां भेजा था और उनसे बालहठ की तरह कहा था कि सुधा को कैसे भी आत्मनिर्भर बना दें। वह दिल्ली से फोन पर सुधा की अपडेट लेता रहता लेकिन उसे कभी भी सुधा की प्रोग्रेस रिपोर्ट से संतुष्टि नहीं हो पाई थी, और इसके लिए सुधा को कई बार चंदर की डांट लग चुकी थी।
भगवान बाबू से जब चंदर मिला तो वह जवाहर नवोदय विद्यालय के रजत जयंती समारोह में शिरकत करने जा रहे थे। चंदर को देखते ही उनकी आंखें चमक गईं और उन्होंने उसे भी गाड़ी में बैठने को कह दिया। टूटा हुआ चंदर न नहीं बोल सका और शिवपालगंज के उत्तरी छोर पर बसे जवाहर नवोदय विद्यायल तक पहुंच गया। इस बीच गाड़ी में उसने मासूमियत से फिर से अपने भगवान सर से वही सवाल दुहराया कि सर स्टेटस क्या होता है?
रजत जयंती कार्यक्रम रंगारंग था। एसडीएम कुमार अनुज का भाषण होना था और चंदर अपनी दुनिया में खोया था- सुधा.... शिवपालगंज ....बाइक....मजबूर शहर ..... बरखा दत्त का इंडिया गेट पर प्रोटेस्ट..... जस्टिस मार्कंडेय काटजू से मिलना....... मां की बीमारी....... सुधा की बीमारी....... रूप्या...... बैंक पीओ.... आत्मनिर्भरता..... सम्मान..... स्टेटस! अचानक हाॅल में छाई चुप्पी ने चंदर को संभाला। मंच से एसडीएम कुमार अनुज का संबोधन शुरू हो रहा था.....
‘‘बच्चों इस आॅडिटोरियम में जितने महापुरूषों की फोटो लगी हुई है उनमें से हर किसी की अपनी पहचान थी....... आप इनकी तरह बनने की बजाय अगर अपनी तरह बनें तो वही सफलता है......गांधी कभी अच्छे वकील नहीं बन सके लेकिन उन्होंने आत्मविश्लेषण किया और एक सफल नेता बने..... मित्रों सफलता एक फीलिंग है! बच्चों आपलोगों को एपीजे अब्दुल कलाम की ‘अग्नी की उड़ान‘ पढनी चाहिए.... उसमें उन्होंने कहीं भी अपनी तरह किसी को बनने के लिए नहीं कहा है......‘‘
चंदर ने एसडीएम का भाषण जितनी गंभीरता से सुना था उतना उसने पहले शायद कोई भाषण नहीं सुना होगा। हां अलग-अलग मौके पर वह भाषण जरूर करता था लेकिन एक जागरूक श्रोता के रूप में चंदर का यह पहला अनुभव था। हाॅल से बाहर आने के बाद चंदर ने एसडीएम से मिलकर उन्हें उनके इनर्जेटिक स्पीच के लिए बधाई दी और फिर डिनर करके भगवान बाबू के साथ गाड़ी में लौट गया। रास्ते में जो एक लाइन चंदर के दिमाग में चोट कर रही थी, वह थी - ‘‘सफलता एक फीलिंग है‘‘!
रात करीब साढे दस बजे चंदर ने काॅल वेल बजाया तो उसके पापा ने दरवाजा खोला और चंदर को कुछ देर अपने साथ बैठने को कहा। दाढी बनाते हुए वह टीवी देख रहे थे। पापाजी से बातचीत के दौरान चंदर को पता चला कि मां ने उसके जाने के बाद खूब आंसू बहाए हैं! चंदर की मां ने आज सुबह ही उसके घर से वो अंचार का डब्बा फेंका था, जिसे चंदर ने सुधा को वापस देने के लिए दिल्ली से लाया था। चंदर वह डब्बा सुधा के भाई को वापस देना चाहता था लेकिन उसके भाई ने उससे मिलने का वादा तो किया लेकिन सुधा की तरह उसने भी छल कर दिया। चंदर के पास सुधा के छोटे पापा सहित अन्य कई परिचितों के पास जाकर उस डब्बे को लौटाने का विकल्प था लेकिन सुधा को यूं सरेआम करना उसे अब भी नामंजूर था। चंदर ने जब पापाजी से मां के रोने का कारण पूछा तो उन्होंने इतना ही कहा कि तुम खाना क्यूं नहीं खाते हो! चंदर ने सुधा की शादी के बाद से एक बार भी घर में ठीक तरह से खाना नहीं खाया था और उसकी मम्मी चंदर की इस हालत को देख आंसू रोक नहीं पा रही थी। चंदर पहले जब भी दिल्ली से शिवपालगंज आता तो अपने मनपसंद की बड़ी, करही, गोभी और अरवा चावल का भात मम्मी के हाथों का बना जरूर खाता। बहरहाल चंदर ने आखिरकार मां को रात वादा दे दिया कि वह कल से सुधा को भुला देगा। सच क्या था यह सिर्फ चंदर जानता था।
डाॅ भगवान प्रसाद सिन्हा वो पांचवे आदमी थे जिससे चंदर ने स्टेटस के बारे में पूछा था.... अपना स्टेटस...... उसका अपना वजूद...... पहचान.... और वो सब जो सुधा के भैया ने चंदर के जीजाजी को सुधा की शादी की रात मजबूर शहर में कही थी। चंदर सुधा को अगर भूला भी दे तो उस ताने को भुलाना उसके लिए असंभव सा था जो उसे सुधा के भाई ने अप्रत्यक्ष रूप से दी थी! ‘‘उसका स्टेटस ही क्या है!‘‘ कहा था सुधा के भाई ने चंदर के जीजाजी से। चंदर के भाई की शादी पांच दिसम्बर को एक बैंक पीओ लड़की के साथ ठीक हुई थी।
चंदर भगवान बाबू के उन छात्रों में था, जिनकी चर्चा उन्होंने इतने लोगों से की थी कि चंदर को शिवपालगंज में नाम से कई लोग पहचानने लगे थे। सुधा को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चंदर ने एक बार उसे भी भगवान बाबू के यहां भेजा था और उनसे बालहठ की तरह कहा था कि सुधा को कैसे भी आत्मनिर्भर बना दें। वह दिल्ली से फोन पर सुधा की अपडेट लेता रहता लेकिन उसे कभी भी सुधा की प्रोग्रेस रिपोर्ट से संतुष्टि नहीं हो पाई थी, और इसके लिए सुधा को कई बार चंदर की डांट लग चुकी थी।
भगवान बाबू से जब चंदर मिला तो वह जवाहर नवोदय विद्यालय के रजत जयंती समारोह में शिरकत करने जा रहे थे। चंदर को देखते ही उनकी आंखें चमक गईं और उन्होंने उसे भी गाड़ी में बैठने को कह दिया। टूटा हुआ चंदर न नहीं बोल सका और शिवपालगंज के उत्तरी छोर पर बसे जवाहर नवोदय विद्यायल तक पहुंच गया। इस बीच गाड़ी में उसने मासूमियत से फिर से अपने भगवान सर से वही सवाल दुहराया कि सर स्टेटस क्या होता है?
रजत जयंती कार्यक्रम रंगारंग था। एसडीएम कुमार अनुज का भाषण होना था और चंदर अपनी दुनिया में खोया था- सुधा.... शिवपालगंज ....बाइक....मजबूर शहर ..... बरखा दत्त का इंडिया गेट पर प्रोटेस्ट..... जस्टिस मार्कंडेय काटजू से मिलना....... मां की बीमारी....... सुधा की बीमारी....... रूप्या...... बैंक पीओ.... आत्मनिर्भरता..... सम्मान..... स्टेटस! अचानक हाॅल में छाई चुप्पी ने चंदर को संभाला। मंच से एसडीएम कुमार अनुज का संबोधन शुरू हो रहा था.....
‘‘बच्चों इस आॅडिटोरियम में जितने महापुरूषों की फोटो लगी हुई है उनमें से हर किसी की अपनी पहचान थी....... आप इनकी तरह बनने की बजाय अगर अपनी तरह बनें तो वही सफलता है......गांधी कभी अच्छे वकील नहीं बन सके लेकिन उन्होंने आत्मविश्लेषण किया और एक सफल नेता बने..... मित्रों सफलता एक फीलिंग है! बच्चों आपलोगों को एपीजे अब्दुल कलाम की ‘अग्नी की उड़ान‘ पढनी चाहिए.... उसमें उन्होंने कहीं भी अपनी तरह किसी को बनने के लिए नहीं कहा है......‘‘
चंदर ने एसडीएम का भाषण जितनी गंभीरता से सुना था उतना उसने पहले शायद कोई भाषण नहीं सुना होगा। हां अलग-अलग मौके पर वह भाषण जरूर करता था लेकिन एक जागरूक श्रोता के रूप में चंदर का यह पहला अनुभव था। हाॅल से बाहर आने के बाद चंदर ने एसडीएम से मिलकर उन्हें उनके इनर्जेटिक स्पीच के लिए बधाई दी और फिर डिनर करके भगवान बाबू के साथ गाड़ी में लौट गया। रास्ते में जो एक लाइन चंदर के दिमाग में चोट कर रही थी, वह थी - ‘‘सफलता एक फीलिंग है‘‘!
रात करीब साढे दस बजे चंदर ने काॅल वेल बजाया तो उसके पापा ने दरवाजा खोला और चंदर को कुछ देर अपने साथ बैठने को कहा। दाढी बनाते हुए वह टीवी देख रहे थे। पापाजी से बातचीत के दौरान चंदर को पता चला कि मां ने उसके जाने के बाद खूब आंसू बहाए हैं! चंदर की मां ने आज सुबह ही उसके घर से वो अंचार का डब्बा फेंका था, जिसे चंदर ने सुधा को वापस देने के लिए दिल्ली से लाया था। चंदर वह डब्बा सुधा के भाई को वापस देना चाहता था लेकिन उसके भाई ने उससे मिलने का वादा तो किया लेकिन सुधा की तरह उसने भी छल कर दिया। चंदर के पास सुधा के छोटे पापा सहित अन्य कई परिचितों के पास जाकर उस डब्बे को लौटाने का विकल्प था लेकिन सुधा को यूं सरेआम करना उसे अब भी नामंजूर था। चंदर ने जब पापाजी से मां के रोने का कारण पूछा तो उन्होंने इतना ही कहा कि तुम खाना क्यूं नहीं खाते हो! चंदर ने सुधा की शादी के बाद से एक बार भी घर में ठीक तरह से खाना नहीं खाया था और उसकी मम्मी चंदर की इस हालत को देख आंसू रोक नहीं पा रही थी। चंदर पहले जब भी दिल्ली से शिवपालगंज आता तो अपने मनपसंद की बड़ी, करही, गोभी और अरवा चावल का भात मम्मी के हाथों का बना जरूर खाता। बहरहाल चंदर ने आखिरकार मां को रात वादा दे दिया कि वह कल से सुधा को भुला देगा। सच क्या था यह सिर्फ चंदर जानता था।
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