सोमवार, 31 दिसंबर 2012


Everyone can't tolerate what I did!!

"युवते के बदले रंग ने युवक को बनाया हत्यारा"

 



रविवार, 16 दिसंबर 2012

हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है 
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
 
सरसराती सांस 

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये
 
जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये
 
बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये
 
ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में
और कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये
 
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये      


 निदा फाजली 

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

साक्षात्कार

                                         आखिरी रास्ता  

तारीखः 04 दिसंबर
समय- देर रात 3 बजे
सारी कोशिशें करने के बाद भी चंदर को नींद नहीं आ रही थी और कभी वह चुकमुक होकर रजाई में खो जाता फिर एक झटके से रजाई फेंक देता...... सिलसिला रात साढे दस बजे से ही चल रहा था, जब चंदर की सुधा से फोन पर अंतिम बार बात हुई थी। सुधा अब ‘नए चंदर‘ के साथ इन चार दिनों में ही इतनी खुश हो गई थी कि उसने पहली बार तो चंदर से बात करने तक मना कर दिया फिर जब चंदर ने उसके भाई अनिकेत को आत्मदाह करने की धमकी दी तब जाकर सुधा बात करने को तैयार हुई थी.

सुधा ने अनिकेत को कहा था कि वह मुश्किल से उन यादों से खुद को बाहर ला पाई है! चंदर ने जब यह सुना तो सन्न सा रह गया। आखिर कैसे दो दिनों में दो सालों की यादों को डिलीट कर दिया सुधा ने, चंदर को यकीन नहीं आ रहा था अपने सुने पर! क्या सुधा की संवेदना मर चुकी है? सुधा के भैया की शादी भी आज ही तय थी ऐसे में हो सकता है कि अचानक इतनी खुशियों से चैंधियाई आंखें चंदर के तड़प तड़प कर दम तोड़ रही सांसें नहीं देख पा रही थीं!

रात एकदम शांत थी। कमरे का सीएफएल जलाकर चंदर बरामदे पर आया और खुद से बात करने की कोशिश  की। चंदर को पता था कि सुधा के "छल" को भुलाने के लिए उसके पास खुद से बात करने के अलावे और कोई विकल्प नहीं है। सुधा अगर अब चंदर को पहचान रही थी तो यही बहुत था चंदर के लिए! बदहवाश से हो चुके  चंदर ने इंग्लिश और हिन्दी में खुद से करीब दस मिनट बात किया... ठीक वैसे ही जैसे कोई पियक्कर करता है. इस दौरान इतना जोर-जोर से बोलने लगा कि बरामदे के उस ओर वाले कमरे में सोए उसके पिता जी की नींद खुल गई। बड़ी मुश्किल से चंदर ने उन दोनों को सुलाया और फिर लैपटाॅप खोलकर बैठ गया।
चंदर ने खुद का साक्षात्कार शुरू किया.....

क्यूं परेशान हो और घरवालों को भी परेशान कर रखा है?
सुधा पराई हो गई और रूप्यों के नशे में उसने मेरा समर्पण, त्याग और जो भी मैंने उसके लिए किया, उसने भुला दिया। इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा।

तो?
तो क्या! मुझे उसकी याद आ रही है। उसके साथ बिताए एक-एक पल याद आ रहे हैं। मैं मर भी नहीं सकता और ऐसा जीना मरने जितना ही कष्ट दे रहा है।

सुधा में ऐसा क्या था?
उसकी फैमिली काफी अच्छी थी और हम एक जिले के ही थे।

मैंने पूछा सुधा में ऐसा क्या था?
सुधा में चरित्र था और वह मुझे बहुत प्यार करती थी। सुधा जितनी प्यार करने वाली लड़की अब मुझे कभी नहीं मिलेगी।

क्या तुम उसी सुधा के चरित्र के बारे में बात कर रहे हो जिसका जून में इंगेजमेंट हुआ और 19 जुलाई को अपने जन्मदिन पर वह तुम्हें नीम के पेड़ के ओट में किस दे रही थी?

कुछ रहस्य है इस सबके पीछे जो मैं नहीं जान पा रहा हूं लेकिन उसने जो भी किया होगा मजबूरी में किया होगा. कोई तो बात है जो मैं समझ नहीं पाया. प्यार अंधा होता है और संभव है उसने जो भी किया मेरे प्यार में किया होगा.

प्यार अंधा नहीं बल्कि तुम अंधे हो चंदर! तुम हमेशा उसकी गलतियों का बचाव करने लग जाते हो, यह मैं करीब दो सालों से देख रहा हूं। उसके लिए तुमने अपने परिवार के लोगों से कट्टी कर ली। खुद अंधे हो और प्यार को गाली दे रहे हो! ठीक हुआ तुम्हारे साथ!

सुधा ने भी तो मेरे लिए अपने घर में काफी कुछ सुना..... जलील हुई..... बेचारी..... फिर भी मुझसे बात करना नहीं छोड़ा कभी उसने!

तुम उसे बेचारी कह रहे हो जिसने इंगेजमेंट के बाद और शादी से तीन दिनों पहले तक तुम्हारे साथ रही और तुम्हें अपनी शादी की खबर तक नहीं दी। ये कैसा प्यार था?

उसे लगा होगा कि चंदर टूट जाएगा इसलिए उसने नहीं बताया होगा, मुझे कभी कभी लगता है जितनी सजा उसने मुझे दी है उससे कहीं ज्यादा उसने खुद को दी है।

चंदर तुम अंधे हो। तुम्हें लड़कियों की पहचान नहीं है और न ही तुम ठीक तरह से अभी परिपक्व हुए हो। लड़कियां सफल लोगों के पीछे ही होती हैं। उसने अब तक तुमसे नहीं बल्कि तुम्हारे कालेज के ब्रांड से प्यार किया था और जब उसे लगा कि तुम उसकी आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहे हो तो उसने तुम्हें ठेंगा दिखा दिया और बैंक पीओ के साथ चली गई. इंसान से प्यार करने वाली लड़कियां अब कम बचीं हैं. ब्रांड का दौर है!

उसने कभी मुझसे कुछ नहीं मांगा। तुम उसको लेकर मेरे मन में नफरत पैदा करना चाहते हो इसलिए ऐसा कह रहे हो। सुधा ने जो भी किया मजबूरी और विवशता में किया होगा।

कैसी विवशता?
उसने एक बार कहा था कि उसे गंभीर बीमारी है और उसे इलाज के लिए बहुत पैसे चाहिए होंगे जो मैं नहीं दे पाउंगा इसलिए मैं उसकी जान बचाने की खातिर उसकी शादी उसके पिता जी के मर्जी से हो जाने दूं। उसने यह भी कहा था  कि वह शायद कभी मां नहीं बन पाएगी। उसकी किडनी में कुछ खराबी है!

यह उसने कब कहा?
ठीक तरह से याद नहीं है!

बस इतना बताओ कि अपने बर्थ डे के बाद या पहले?
बर्थ डे के बाद अगस्त या सितम्बर में!

एक बात बता कि अगर उसे ऐसा कुछ था तो वह तुम्हें पहले भी तो बोल सकती थी। इंगेजमेंट के बाद क्यूं बोला?
शायद उसे बाद में ही पता चला होगा इसलिए। इसमें उसकी क्या गलती है! परिवार वालों ने उससे यह सच छुपाया होगा इसलिए उसे पता नहीं होगा. जीना कौन नहीं चाहता?

तू फिर उसका डिफेंस कर रहा है। तू अब भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उसने तेरा जमकर यूज किया, जितना सहानुभूति, साथ और प्यार तुझसे ले सकती थी, उसने ले लिया और फिर तेरी कंगाली को ठेंगा दिखाते हुए बैंक पीओ के पास चली गई। मां न बनने वाली बात कहकर उसने एक तीर से दो शिकार कर लिया। पहला तुमसे सहानुभूति जीत ली और दूसरा उसने यह भी जता दिया कि वह तुमसे अलग होकर तुमपर ही उपकार कर रही है।
सुधा ऐसी नहीं है।

तो फिर कैसी है तुम्हारी सुधा? अब भी आंख खोल लो और चीजों को फिर से पहचानना शुरू करो.
मैं क्या करूं? मैं सुधा को हर्ट नहीं करना चाहता, वह गलत हो तो भी नहीं!

अच्छा एक बात बता सुधा में ऐसा क्या था जो तू उसके एक बुलावे पर दिल्ली से आ जाता था और पूरी सैलरी उसपर लुटाने को आतुर हो जाता था?
सुधा का कोई भी सपना पूरा नहीं हो पाया था. बेचारी अपना डाॅक्टर बनने का सपना पूरा नहीं हो पाने के कारण काफी टूट गई थी। मैं उसे इस सदमे से निकालना चाहता था। मैं उसे आत्मनिर्भर बनाना चाहता था और इसलिए मैंने झूठ-सच बोलकर उसे एक सर और अपने भैया के यहां पढने भी भेजा था। उसे घर में मन नहीं लगता था क्योंकि उसके सब भाई और बहन अच्छी जगहों पर पढ रहे थे वही बेचारी घर में पड़ी रहती थी।

तो क्या हुआ जब तुमने उसे यहां-वहां पढने भेजा?
मैं उसका फीडबैक सर से और भैया से फोन पर लेता रहता था। लेकिन फीडबैक अच्छा नहीं आता था। सर कहते थे कि इसे शुरू से बताना पड़ेगा मैंने उसे एनसीईआरटी की किताबें भी खरीदवाई थी और उसे नियमित इंटरनेट पर भी जाने को कहता था। मैंने कई बार उसे द हिन्दू अखवार और बिजनेस स्टैंडर्ड लेने को कहा था लेकिन किसी मजबूरी के कारण वह ये सब नहीं कर पाई थी। इसके लिए मैं उसे डांटता भी था। मुझे लगता है मेरी डांट के कारण ही वह मुझे छोड़ कर चली गई क्योंकि मैं उसे कभी प्यार नहीं करता था, हमेशा डांटता ही था।

भोले तू और भोला मत बन वरना अगली बार कोई सुधा मिलेगी तो अपनी शादी करने से पहले तुझे धोखे से जान से मार देगी। इसने तो छोटा धोखा किया तेरे साथ शुक्र मना कि तू जिन्दा है! वरना लड़कियों को जानना हर किसी के बश में नहीं है..... अच्छा ये बता कि उसका सबसे ज्यादा इंटरेस्ट किसमें था?
ब्यूटी पार्लर जाने में।

तुझे कैसे पता?
दो सालों में इतना तो पता चल ही जाता है। उसका पढाई में इंटरेस्ट कम हो चुका था. वह टूट चुकी थी शायद और लंबे समय से चार दिवारी में रहने के कारण यह स्वाभाविक था. मैं उसके मुंह से यह सुनने को तरस गया था कि ... मुझे यह फाॅर्म भरना है.... मुझे यह किताब लेनी है.... अभी पढ रही हूं बाद में फोन करेंगे.... वगैरह वगैरह.....। उसके जन्मदिन पर मैं उसे ब्यूटी पार्लर से उसके घर तक बाइक पर ले गया था। उस दिन वह बहुत सुंदर लग रही थी हरे कपड़ों में! मैं उसे देखा तो देखता ही रह गया था। इससे सुंदर वह बस दिवाली की उस रात को ही लगी थी।

तुझे उसमें सबसे अच्छा क्या लगता था?
उसकी नाक।

ऐसा क्या था उसके नाक में?
ये सिर्फ मुझे पता है! मजबूर शहर में जब मैं उसे बाइक पर घुमाने दूर तक लाया था तो एक जगह मैंने उसके नाक को बड़े रोमांटिक अंदाज में चूमा था। वह पल मैं कभी नहीं भूल पाउंगा.....

... और उसमें तुझे सबसे बुरा क्या लगता था?
उसकी उंगली। मुझे लंबी उंगलियां पसंद नहीं हैं। उसकी उंगलियां उसके पापा पर गई हैं।

उसके साथ बिताया सबसे अच्छा पल कौन सा था?
पिछले साल अगस्त की वह शाम जब मजबूर शहर से दूर हम और वो बाइक पर आए थे। मैं उसके लिए पनीर और पुलाउ बना कर लाया था। दूर जंगल में मैंने उसे अपने हाथों से पनीर खिलाया था... खाने के बाद हम दोनों एक दूसरे में कुछ देर के लिए खो गए थे। वह पल मेरी जिंदगी का ऐतिहासिक पल था। पहली बार ऐसा हो रहा था. इन सब पलों के कारण ही आज सुधा को भुलाने में मुझे इतनी दिक्कत हो रही है। पता नहीं उसने इन पलों को कैसे भुलाया होगा!

अब वो इतने अमीर घराने में गई है कि अब पिकनिक पर बाइक से नहीं बल्कि चारपहिए से जाएगी। और हां... पुलाउ पनीर नहीं अब उसका बैंक पीओ पति उसे मटन खिलाएगा!

........

रोने से क्या फायदा है?
........

तो फिर रो और मर जा लेकिन याद रख तेरी अर्थी भी अगर सुधा के दरवाजे से निकलेगी तो सुधा उस ओर झांकेगी नहीं। लड़कियों की पहचान नहीं है तुम्हें! अगर होती तो इस तरह ये हाल नहीं होता तेरा!....... अच्छा ये बता उसके साथ बिताया सबसे बुरा पल कौन सा था?
इसी साल उसके जन्मदिन पर जब मैं शिवपालगंज के टाउनशिप में आहार उत्सव में उसे पार्टी देने के बाद निकला तो वह घर जाने की जल्दीबाजी करने लगी। मैं अपना हेलमेट रेस्टोरेंट में ही भूल गया था। जब मैं हेल्मेट लेकर लौटा तो वह किसी से फोन पर बात कर रही थी। मैंने उससे पूछा नहीं। इसके बाद जब मैं उसके साथ टाउनशिप के चक्कर लगा रहा था तो उसने मुझे खूब डांटा क्योंकि वह घर में झूठ बोलकर आई थी और उसे देर हो रहा था।

तुमने ये जानने की कोशिश क्यूं नहीं की कि वह फोन पर किससे बात कर रही थी?
मुझे इसकी जरूरत महसूस नहीं हुई। मुझे उसपर विश्वास था..... शायद वह उस दिन धीरज से बात कर रही होगी जो अब उसका ‘‘नया चंदर‘‘ है।

सुधा से मिलने से पहले तू कैसी जीवनसाथी के सपने देखता था?
ठीक तरह से याद नहीं है क्यूंकि सपने बासी हो गए लेकिन कुछ कुछ याद है मसलन उसकी उंगलियां छोटी हों, हंसते वक्त गाल पर डिंपल बन जाए, वह जुनूनी हो और अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि का बोझ लेकर नहीं चलती हो... चश्मा हो तो फिर क्या कहना! चश्मा पढाकू लड़कियों की पहचान है और मेरी पत्नी अगर बिना चश्मा की हुई तो मैं उसे जबर्दस्ती चश्मा पहनाउंगा!

सुधा के बाद अब तू कैसी जीवनसाथी के सपने देखता है?
जिसमें दूर दूर तक सुधा की परछाई भी न हो!

अगर हुआ तो?
नहीं होगा. मैंने किसी के साथ बुरा नहीं किया तो मेरे भी साथ बुरा नहीं होगा इतना मुझे विश्वास है।

लेकिन तुम्हारे साथ तो बुरा हो गया..... सुधा तेरे स्टेटस को ठेंगा दिखा गई!
जो हो गया सो हो गया। मैं अब सुधा को याद ही नहीं करना चाहता हालांकि ये मुश्किल है फिर भी मैं कोशिश  कर रहा हूं।

अगर समय का पहिया वापस घुमे तो तुम अपनी जिंदगी दुबारा कहां से शुरू करना चाहोगे?
22 अगस्त, 2010 को, जब मेरी और सुधा की पहली बार बात हुई थी।

अगर अल्ला तुझे सुधा को सजा देने को कहे तो उसे कौन सी सजा दोगे?
सुधा को लड़का बनाकर उसपर अपने जितनी जवाबदेहियां लाद दूंगा और फिर उसे ऐसी ही चोट दूंगा जो वह और उस जैसी लड़कियां लड़कों को देती हैं!

किसी बात का अफसोस जो आगे रहेगा?
कई बातों का अफसोस रहेगा। सबसे अधिक अफसोस इस बात का रहेगा कि मैं अपनी होने वाली जीवनसाथी के सामने नजर नहीं मिला सकूंगा क्यूंकि सुधा के स्पर्श से मैं खुद को अपवित्र समझने लगा हूं। मुझे घिन्न सी आती है अब खुद से शायद उसे भी आती होगी.

किसी बात की तसल्ली?
सबसे बड़ी तसल्ली इस बात की है कि मैंने सुधा के साथ कभी गलत नहीं किया। शादी की रात मैंने आवेग में उसे काफी बुरा भला भी कहा था लेकिन बाद में मैंने माफी मांग ली। पांच दिसम्बर को जब मैं उसके घर पर उसके भैया से मिलने गया तो उस वक्त मेरा गुस्सा चरम सीमा पर था। मैं सीधा उसके घर में घुस गया और सुधा दिख गई लेकिन मुझे अब तक उससे इतनी घिन्न हो चुकी थी कि मैं उसे कुछ बोल न सका।

तुम क्या चाहते हो? क्या ऐसा है जो तुम्हें मिल जाए तो तुम शांत और पहले जैसे सदाबहार हो जाओगे?
भरोसा एक ही बार टूटता है। सुधा मेरी आस्था थी, जो दरक गई। क्या कोई मुझे वो असंख्य क्षण लौटा सकेगा जिसपर मैंने सिर्फ सुधा को हक दिया था। घर और परिवारवालों का फोन मैं न भी लेता लेकिन सुधा का फोन काटकर आॅफिस के नंबर से उसे फोन करता और जबतक उसके भैया, मम्मी या कोई नहीं आ जाते मैं फोन नहीं रखता। मुझे इस कारण आॅफिस में डांट भी लगी थी कि मैं फोन पर घंटों लगा रहता हूं लेकिन जिस सुधा के लिए मैंने घरवालों की ही परवाह नहीं की उसके लिए एडिटर की क्यूं सुनता!

अब आगे ?
इस घटना के बाद सोच रहा हूं कि कभी शादी ही न करूं! अगर सुधा जैसी कोई पत्नी मिल जाती है तो मैं उसे जान से मार दूंगा। सुधा के कारण मुझे अब सभी लड़कियों पर शक होने लगा है और ऐसे में मेरा वैवाहिक जीवन हमेशा तनावपूर्ण बना रहेगा इससे अच्छा है कि मैं शादी ही न करूं!


बियावान

                                    संवेदना सो चुकी थी.....

आखिरकार, शादी के पांच दिनों बाद चंदर की रणनीति काम आ गई और उसकी सुधा से बात हो गई। सुधा अपने भाई की शादी में शिवपालगंज आई हुई थी और उसके छोटे भाई अनिकेत को विश्वास में लेकर चंदर ने इस योजना को अंजाम दिया था। अनिकेत का विश्वास जीतने के लिए उसने पहले तो उसे हल्की सी धमकी देकर मुलाकात की और फिर उसे सुधा का दिया सबकुछ लौटा दिया।

अनिकेत समझदार निकला। उसने चंदर को बोलने का पूरा मौका दिया और सामान्य लहजे में मध्यवर्गीय परिवार की मजबूरी बता दी। चंदर ने उसके हाथों ही सुधा के प्रेम पत्र की होली जला दी ताकि सुधा कहीं इस चिंता में न रहे कि चंदर उसे कभी ब्लैकमेल करेगा!

सुधा पहली बार तो फोन पर आने को राजी नहीं हुई लेकिन अनिकेत ने उसे आखिरकार तैयार कर लिया था। चंदर ने सुधा को सवाल करने का पूरा मौका दिया और बातचीत की शुरुआत उसने माफी से की जो शादी की रात हुई बातचीत के दौरान आक्रोश में आकर कभी बात न करने की कसम के लिए थी। करीब आधे ंघंटे की बातचीत में सबसे दिलचस्प यह रहा कि सुधा चंदर के सवालों का सीधा जवाब देने से बचती रही वहीं चंदर उसे सवाल उठाने के लिए ललकारते रहा। बातचीत के बीच विश्वास, आस्था, रूप्यों का घमंड और सच्चे प्यार जैसे शब्दों ने जगह बनाई और आखिरकार चंदर बातचीत के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सुधा को अपने किये पर पछतावा नहीं है। सुधा की एक दोस्त सोनम में एक बार चंदर को बताया था कि सुधा काम निकलने तक ही लोगों से मतलब रखती है। जब सुधा स्किन डिजीज से ग्रस्त थी तो सोनम ने उसकी बैशाखी की भूमिका निभाई थी इसके बदले सोनम को सुधा का थेंक्स तक नहीं मिल पाया था!! सुधा चंदर को अब आप कहकर संबोधित कर रही थी और काफी निश्चिन्त दिख रही थी। मानो सिंदूरदान के बाद लड़की वाले निश्चिन्त हो जाते हैं कि अब तो शादी हो गई! चंदर इसे समझ रहा था लेकिन उसका इमोशनल जुड़ाव उसे अब भी उस सुधा की ओर खींचता था, जो कभी उससे शायद प्यार करती थी।

दहन

                                      चुन्नी बाबू का न होना....
 
‘‘चंदर, तुमने जो मीडिया-पथ चुना है उसमें चुनौती तुमसे अप्वाइंटमेंट लेकर नहीं आएगी। शाम के अंधेरे में एक तीखी आक्रामक चुनौती यकायक तुम्हारा रास्ता रोक कर तुम्हें द्वंद्व के लिए ललकारेगी और तुम्हें अपनी सारी क्षमता और मनोबल के साथ उसका सामना करना होगा। विश्वास रखो, पीछे बराबर मैं रहूंगा और हर घात-प्रतिघात पर तुम्हें दिशा -निर्देश दूंगा। पर अगर तुम उस रास्ते से लौटने की सोचने लगो, तो यह उस रास्ते का भी अपमान है और तुम्हारा व मेरा भी!‘‘
यह धिक्कार और किसी की नहीं खुद चंदर की अतंरात्मा की थी।

चंदर ने अगर जिंदगी में एक भी अच्छा काम किया था तो वह था दोस्तों का चयन करते वक्त अतिरिक्त सावधानी बरतना। अगर चंदर सुधा के दिए चोट के बाद देवदास नहीं बना था तो इसका श्रेय उसके गिने चुने दोस्तों को जाता था, जिनमें से कोई भी चुन्नी बाबू जैसे नहीं थे!

सुधा का वो लव लेटर चंदर हर हाल में उस तक सुरक्षित वापस पहुंचाना चाहता था! बीएचयू में पढने वाले उसके दोस्त साकेत ने ही उसे समझाया था कि वह उस लेटर को जला दे क्योंकि अगर लव लेटर किसी के हाथ लग गया तो सुधा की जिंदगी जहन्नुम बन जाएगी।
इधर चंदर के दिमाग में यह चल रहा था कि अगर वो लेटर चंदर के पास रहा तो सुधा यह सोचकर परेशान  रहेगी कि चंदर कुछ गलत न कर दे! सुधा को जवाबी कार्रवाई की आशंका थी, जो उसने शादी की रात चंदर को फोन पर व्यक्त भी किया था.... जब वह सोरी बोली थी। साकेत की मध्यस्थता के बावजूद सुधा का लव लेटर गंतव्य तक नहीं पहुंच पाया!
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महीनों चंदर से मिलने-जुलने और रात-रात भर फोन पर बात करने और चंदर को अपनी शादी के बारे में कुछ न बताने की बजाय अचानक विवाह कर लेना और उसका समाचार एक तीसरे व्यक्ति द्वारा चंदर के पास पहुंचना एक कोमल संबंध की बहुत भौड़ंी, क्रूर परिणती थी। इसे चार-पांच पंक्तियों के एक छोटे से मेल से संभाला जा सकता था, ‘‘प्रिय चंदर, तुम मेरे सबसे निकट हो इसलिए सबसे पहले तुम्हें यह बताना मेरा कर्तव्य है कि मैं एक बैंक पीओ लड़के के साथ परिणय सूत्र में बंध रही हूं। पापा और घरवालों को विश्वास है कि वह मेरी बीमारी का इलाज करा देगा और मुझे वो सभी खुशियाँ देगा जो तुम नहीं दे सकते थे। मेरा और ‘नए चंदर‘ का संबंध जल्दी ही एक सामाजिक रिश्ते में बदल रहा है। वह तारीख 29 नवंबर तय की गई है। हमारा इंगेजमेंट जून में ही हो गया था लेकिन मैं इसे छुपाकर तुमसे मिलती रही। शायद यह गलत था लेकिन तुम्हारे प्यार और अपनापन ने मुझमें गलत और सही के फासले को समझने की क्षमता खत्म कर दी थी। तुम हमेशा  अच्छे बने रहोगे मुझे इसका विश्वास है। हम एक-दूसरे के बच्चों की शादी में जरूर मिलेंगे और तुम्हारे लिए लड़की मैं देखूंगी। शुभकामनाओं के साथ......‘‘ चंदर इस काल्पनिक मेल का मसौदा सोचकर थोड़ी देर शांत  पड़ा रहा और फिर खुद को बहलाने के लिए नोवेल के पन्ने पलटने लगा।

----शिवपालगंज के अपने मुहल्ले में चहलकदमी करते हुए चंदर ऐसा दिख रहा था जैसे किसी आत्मीय का दाह-संस्कार करके लौट रहा हो। सुधा के अनेक स्म्रति चिह्न जलते बुझते रहते थे। सुधा का दुमंजिला मकान सामने आया...... सुधा छत पर कपड़े सुखा रही है और चंदर गली के मोड़ से उसे देख रहा है....... सुधा के छोटे पापा के छोटे छोटे बच्चे उसका दुपट्टा खींच रहे हैं और सुधा सबसे नजर छुपाए बस चंदर को देख रही है....... सुधा नीचे आती है...... उसकी दादी भी साथ है...... गली के मोड़ पर चंदर हिम्मत जुटा कर फ्लाइंग किस देता है..... लेकिन सुधा की नजरें तबतक उससे हट कर अपनी दादी पर चली जाती है.......... सुधा फिर उसे जाने को कहती है....... चंदर बुझे मन से उस संकरी गली को छोड़ जाता है....... और फिर दौर कर वापस आकर सुधा के लिए लाया पर्क चाॅकलेट उसके रेलिंग के अंदर गिरा देता है, जो वह देना भूल ही गया था..... सुधा मुस्कुराती है... फिर शाम ..... रात...... सुबह.... दोपहर....... समय चलता है और 29 नवंबर तक पहुंच जाता है!



सुधा की शादी को चार दिन हो चुके थे.......


रविवार, 2 दिसंबर 2012

Emotion

           You left me without a goodbye!


I've tried so many times but can't get her out of my mind cause every single detail in my daily life reminds me of her. Fighting with my diary became a routine work for me now. I wish, I could scratch the pages and got her! I wish...!!!

I didn't ever try to ignore or deny to face her question but I couldn't make her so....alas... She might be hurt by my tepid style of answering few complicated questions but I didn't allow her opportunity to blame me for ignoring or overlooking her questions. 

Please please please come back and answer my question last time plzzzzzzzz........ Why did you make a lie before me! What was my guilt?? Why did you cheat my trust and how dare you fuck(Yes, FUCK) my true emotion wantonly! Can you provide any "guarantee card" to me or your family that whatever you did with me, would not be repeated with your new "Chandar"!! Will you...???

Even now I have due sympathy for your physical concern and it will be... but what I had earlier, was more than sympathy. I don't have word but you can define it as a strong emotion and feeling that compelled me to resort rift with my oldest Brother! 

One day, my jijajai warned me "wo ladki aapko dhokhaa de rhi hai, uska engagement ho gya hai aur ladka yahi kaa hai...".  But..... "Winashkale WipriteBuddhi"! I ignored his advice and even sent an SMS to him... shown my strong trust on you.... What the hell I did....... alaaaaaaasssss!!! 

Sometimes I pretend being assertive and try to move on with my life but in vain. Now, I always wonder what you are doing? who are with you? Do you miss me? These questions are killing me..... are you getting me!! Hey.... are you getting me....I am getting mad.... plzzzzz answer to me plzzz last time please!! Kill me but please let me have my answer first!! Why did you breach my trust!! Why why why?? I won't let you live peacefully till I get my answer!! I will do as possible I can....I will...

your absence is killing me.... 

 Will you please tell me the secret of the technique, by which you have formatted your memory?? Please.... How did you recycle all the memories, we shared in Lohianagar, Temple, Garden, Road, Streets, Floor, Auto, in Punia.... how did you forget those days we enjoyed in G D College, Co-operative College, Onam residence, Restaurant in Township in your b'day 19th of July.... ... ____   .... How did you forget my first touch?? I couldn't till now!! Cracking Gullak in AIIMS, meeting in Mayur Vihar, GIP Mall of Noida......  how did??? Hey tell me yaar ..... seriously I am loosing my temper....please hath jodta hu yaar bta do n kaise kiya tumne ye sab!!!

What hurts me the most is that I have never got the chance to put my favour or show my integrity, honesty, dedication ...x...y...z... before your family. Yes I don't have better job and it might have been harm the dignity of your family... may be I am not expected to provide you the facility of Tata Safari as "S" husband to you as well.... Yes I accept my defeat that I couldn't get the "deserved job", for which I was given an ultimatum of six months indirectly by your Super Most hon'ble Sri Sri "S" Bhaiya . I request you and your family to come in Delhi and gather information about me.... Listen... I bid, I'll take back all words and apology via this platform, if even a single person raise fingure on my dedication and devotion..... Now I am tired yaar.... How shame it is to me!!!


You left me without a goodbye and never bothered to ask if I'm fine or not, If I'm still alive or not, maybe we're not meant to be together but it's tearing me apart. 

You and your family will have to pay the cost of my teardrop..... I am alive!

Now I feel that my heart is torn apart and I hurt myself a lot trying to put it all back together. My life is empty, my heart is empty and I don't know how to heal I don't know how to move on and let you go. I'm fed up trying over and over and failing. I want my life back ......

धुंध

                       सफलता एक फीलिंग है बच्चों!

डाॅ भगवान प्रसाद सिन्हा वो पांचवे आदमी थे जिससे चंदर ने स्टेटस के बारे में पूछा था.... अपना स्टेटस...... उसका अपना वजूद...... पहचान.... और वो सब जो सुधा के भैया ने चंदर के जीजाजी को सुधा की शादी की रात मजबूर शहर में कही थी। चंदर सुधा को अगर भूला भी दे तो उस ताने को भुलाना उसके लिए असंभव सा था जो उसे सुधा के भाई ने अप्रत्यक्ष रूप से दी थी! ‘‘उसका स्टेटस ही क्या है!‘‘ कहा था सुधा के भाई ने चंदर के जीजाजी से। चंदर के भाई की शादी पांच दिसम्बर को एक बैंक पीओ लड़की के साथ ठीक हुई थी।

चंदर भगवान बाबू के उन छात्रों में था, जिनकी चर्चा उन्होंने इतने लोगों से की थी कि चंदर को शिवपालगंज में नाम से कई लोग पहचानने लगे थे। सुधा को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चंदर ने एक बार उसे भी भगवान बाबू के यहां भेजा था और उनसे बालहठ की तरह कहा था कि सुधा को कैसे भी आत्मनिर्भर बना दें। वह दिल्ली से फोन पर सुधा की अपडेट लेता रहता लेकिन उसे कभी भी सुधा की प्रोग्रेस रिपोर्ट से संतुष्टि नहीं हो पाई थी, और इसके लिए सुधा को कई बार चंदर की डांट लग चुकी थी।

भगवान बाबू से जब चंदर मिला तो वह जवाहर नवोदय विद्यालय के रजत जयंती समारोह में शिरकत करने जा रहे थे। चंदर को देखते ही उनकी आंखें चमक गईं और उन्होंने उसे भी गाड़ी में बैठने को कह दिया। टूटा हुआ चंदर न नहीं बोल सका और शिवपालगंज के उत्तरी छोर पर बसे जवाहर नवोदय विद्यायल तक पहुंच गया। इस बीच गाड़ी में उसने मासूमियत से फिर से अपने भगवान सर से वही सवाल दुहराया कि सर स्टेटस क्या होता है?

रजत जयंती कार्यक्रम रंगारंग था। एसडीएम कुमार अनुज का भाषण होना था और चंदर अपनी दुनिया में खोया था- सुधा.... शिवपालगंज ....बाइक....मजबूर शहर ..... बरखा दत्त का इंडिया गेट पर प्रोटेस्ट..... जस्टिस मार्कंडेय काटजू से मिलना....... मां की बीमारी....... सुधा की बीमारी....... रूप्या...... बैंक पीओ.... आत्मनिर्भरता..... सम्मान..... स्टेटस! अचानक हाॅल में छाई चुप्पी ने चंदर को संभाला। मंच से एसडीएम कुमार अनुज का संबोधन शुरू हो रहा था.....

‘‘बच्चों इस आॅडिटोरियम में जितने महापुरूषों  की फोटो लगी हुई है उनमें से हर किसी की अपनी पहचान थी....... आप इनकी तरह बनने की बजाय अगर अपनी तरह बनें तो वही सफलता है......गांधी कभी अच्छे वकील नहीं बन सके लेकिन उन्होंने आत्मविश्लेषण किया और एक सफल नेता बने..... मित्रों सफलता एक फीलिंग है! बच्चों आपलोगों को एपीजे अब्दुल कलाम की ‘अग्नी की उड़ान‘ पढनी चाहिए.... उसमें उन्होंने कहीं भी अपनी तरह किसी को बनने के लिए नहीं कहा है......‘‘

चंदर ने एसडीएम का भाषण जितनी गंभीरता से सुना था उतना उसने पहले शायद कोई भाषण नहीं सुना होगा। हां अलग-अलग मौके पर वह भाषण जरूर करता था लेकिन एक जागरूक श्रोता के रूप में चंदर का यह पहला अनुभव था। हाॅल से बाहर आने के बाद चंदर ने एसडीएम से मिलकर उन्हें उनके इनर्जेटिक स्पीच के लिए बधाई दी और फिर डिनर करके भगवान बाबू के साथ गाड़ी में लौट गया। रास्ते में जो एक लाइन चंदर के दिमाग में चोट कर रही थी, वह थी - ‘‘सफलता एक फीलिंग है‘‘!

रात करीब साढे दस बजे चंदर ने काॅल वेल बजाया तो उसके पापा ने दरवाजा खोला और चंदर को कुछ देर अपने साथ बैठने को कहा। दाढी बनाते हुए वह टीवी देख रहे थे। पापाजी से बातचीत के दौरान चंदर को पता चला कि मां ने उसके जाने के बाद खूब आंसू बहाए हैं! चंदर की मां ने आज सुबह ही उसके घर से वो अंचार का डब्बा फेंका था, जिसे चंदर ने सुधा को वापस देने के लिए दिल्ली से लाया था। चंदर वह डब्बा सुधा के भाई को वापस देना चाहता था लेकिन उसके भाई ने उससे मिलने का वादा तो किया लेकिन सुधा की तरह उसने भी छल कर दिया। चंदर के पास सुधा के छोटे पापा सहित अन्य कई परिचितों के पास जाकर उस डब्बे को लौटाने का विकल्प था लेकिन सुधा को यूं सरेआम करना उसे अब भी नामंजूर था। चंदर ने जब पापाजी से मां के रोने का कारण पूछा तो उन्होंने इतना ही कहा कि तुम खाना क्यूं नहीं खाते हो! चंदर ने सुधा की शादी के बाद से एक बार भी घर में ठीक तरह से खाना नहीं खाया था और उसकी मम्मी चंदर की इस हालत को देख आंसू रोक नहीं पा रही थी। चंदर पहले जब भी दिल्ली से शिवपालगंज आता तो अपने मनपसंद की बड़ी, करही, गोभी और अरवा चावल का भात मम्मी के हाथों का बना जरूर खाता। बहरहाल चंदर ने आखिरकार मां को रात वादा दे दिया कि वह कल से सुधा को भुला देगा। सच क्या था यह सिर्फ चंदर जानता था।


मिस यू

                              अगस्त का वो महीना...

चंदर और सुधा एक दूसरे से मिलने के लिए मौके की ताक में रहते थे। दोनों शिवपालगंज  के ही रहने वाले थे लेकिन सुधा के पिता जी के तबादले के कारण सुधा अब मजबूर शहर में रहने लगी थी। मजबूर शहर चंदर के लिए एकदम परिचित था और इसकी वजह चंदर की उस शहर में कई रिश्तेदारियां थी। जिस दिन सुधा को उसके पापा के तबादले की खबर मिली थी, उस दिन सुधा ने चंदर को मैसेज किया था- ‘‘आई एम सेड‘‘, चंदर ने जब फोन किया तो सुधा ने सुबकते हुए कहा था उसके पिता का शिवपालगंज में आॅफिस के बाॅस से खटपट हो गई है और उन्होंने चिढ से उसके पापा का तबादला मजबूर शहर में कर दिया है।

रक्षाबंधन का दिन दोनों ने मुलाकात के लिए तय किया था! दरअसल चंदर की दो बहनें मजबूर शहर में ही रहतीं थी और चंदर का सुधा को चारपहिए पर घुमाने का बड़ा मन था। एक ओर जहां शिवपालगंज में चंदर को गाड़ी किराए पर लेनी पड़ती वहीं मजबूर शहर में उसकी दोनों बहनों के बाद अपनी गाड़ी थी और चंदर का यह सपना कुछ झूठ बोलकर पूरा हो सकता था।

चंदर के लिए अगस्त की वो रात ऐतिहासिक थी जब उसने गलती से सुधा की जगह उसकी बहन से फोन पर बात कर लिया था! पांच अगस्त को आॅफिस से थका हुआ चंदर कमरे पर लौट रहा था इसी दौरान उसे बदमाशी सूझी और उसने पियक्कर की एक्टिंग करते हुए सुधा को फोन लगा दिया। चंदर को अपनी शरारत  की ऐसी सजा मिली कि उसे सुधा की बहन को दुबारा फोन करके यकीन दिलाना पड़ा कि उसने शराब को कभी हाथ तक नहीं लगाया है! पहली बार फोन काटने के बाद चंदर को एहसास हुआ था कि उसने सुधा की बजाय किसी और से बात कर ली है.... जब सुधा की बहन ने उससे पूछा था कि तुम्हारी जाति क्या है! कुछ देर तक तो चंदर हंसते हंसते लोटपोट हुआ था फिर सुधा की फजीहत के बारे में सोचते हुए उसने उसकी चश्मिश बहन ने क्षमायाचना किया था। सुधा की उस चश्मिश बहन से चंदर को माफ किया या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन अलबत्ता उसने घर में ढिंढोरा पीट दिया और चंदर की शरारत की सजा बेचारी सुधा को भुगतनी पड़ी और फिर जो उसका मोबाइल घरवालों ने छीना तो सुधा को उसे वापस पाने के लिए ‘‘भागीरथ प्रयत्न‘‘ करना पड़ा।

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दो दिन बाद ही सुधा के घर में मची हलचल ने नया रंग जमाया और सुधा ने चंदर को बैंक पीओ बनने का नोटिस जारी करके एक साल की मोहलत दे दी। चंदर के लिए बैंक पीओ बनना उसी तरह था जिस तरह बरखा दत्त के लिए फैशन डिजाइनर बनना! अचानक सुधा के इस रूप को देखकर जबतक चंदर अपनी स्थिति को नाॅर्मल करता इससे पहले ही दूसरा तीर आ लगा। हुआ यूं कि रात में काफी देर तक रिंग होते रहने से खीझ कर जब ंचंदर ने उससे फोन न लेने का कारण पूछा तो सुधा ने मासूमियत से कहा कि वह पापा के साथ धड़कन मूवी देख रही है। चंदर का बस चलता तो वह धड़कन मूवी को बैन कर देता या फिर फिल्म का पूरा फोकस सुनील शेट्ठी की मां पर कर देता। उसके अनुसार यह मूवी डायरेक्टर ने शायद अपनी बेटी के भाग जाने के फ्रस्ट्रेशन  में बनाई होगी! सुधा का यह कहना कि धड़कन उसके पापा की फेवरेट मूवी है, ने चंदर को अपना भविष्य दिखला दिया था उपर से सुधा भी अपने पापा को इंडोर्स कर रही थी। चंदर ने उस रात उसे बुरी तरह डांटा था कि वह सिनेमा विनेमा छोड़ कर पढाई पर ध्यान दे और ऐसा बनकर दिखाए कि उसके पापा को उसके लिए एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़े। चंदर चाहता था कि वह खुद को इस मुकाम पर पहुंचा ले कि वह उसके परिवार को पसंद आ जाए और फिर चंदर दहेज माफ कर उनके दिल में बस जाए। सुधा उसे अक्सर बताती थी कि उसकी चचेरी बहन के लिए लड़के वाले ही उसके दरवाजे पर आए थे और फिर कहती कि उसकी चचेरी बहन टाटा सफारी से आती है! चंदर सुधा के इस सपने को साकार नहीं कर सका इसका मलाल लिए उसे जिंदगी भर जीना होगा!

13 अगस्त की उस शाम को चंदर कभी नहीं भूल पाएगा जब उसने सुधा को बाइक पर मजबूर शहर से दूर एक एकांत में घुमाने लाया था। सुधा को गोद में लेकर उसने उसे फिल्मी स्टाइल में किस किया था..... सुधा पहले शर्मा गई थी लेकिन फिर दोनों एक दूसरे के साथ लिपट गए थे। आम के पेड़ के ओट में एक नए रिश्ते पनप रहे थे जिन्हें 29 नवंबर को हमेशा हमेशा के लिए अलग होने की सजा सहर्ष स्वीकार करनी थी। इस किस के कुछ ही दिनों बाद चंदर ने सुधा के लिए एलआईसी का एक बीमा लिया था ताकि वह सुधा का इलाज करवा सके। उसने सुधा को यह बताया नहीं था क्योंकि वह सुधा को सरप्राइज करना चाहता था लेकिन सुधा ने उसे अपने इंगेजमेंट के बारे में नहीं बताकर और उसे धोखे में रखकर जिस तरह उसके साथ छल किया था इसके बाद चंदर को इस बात का पछतावा नहीं रहा कि उसने सुधा को उस एलआईसी की जानकारी नहीं दी।
लगातार तीन दिनों तक चंदर अलग अलग गाडि़यों से सुधा को घुमाता रहा। इस बीच वे मंदिर भी गए जहां सुधा ने चंदर का गुल्लक फोड़ा। चंदर यू ंतो रूप्ये अपने बैंक अकाउंट में जमा करता था लेकिन गुल्लक फोड़ते वक्त सुधा के चेहरे की रूहानी हंसी से उसे इतना कायल कर दिया था कि वह दिल्ली में एक गुल्लक में रूप्ये जमा करता और जब शिवपालगंज या मजबूर शहर आता तो सुधा से गुल्लक फोड़वाता।

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इन तीन दिनों में एक मजेदार वाक्या हुआ। दरअसल, चंदर ने इन तीन दिनों में अपने रिश्तेदार को झूठ बोलकर उनकी बाइक बारी बारी से सुधा को घुमाने के लिए लाता था। बाइक पर घूमना सुधा को काफी पसंद था और उसकी पसंद को पूरा करने की कीमत अपने भैया से रिश्ता खराब करने के रूप् में चुकानी पड़ी। एक दिन जब वह और सुधा बाइक पर चिपक कर तेजी से एयरफोर्स क्वार्टर के पास से गुजरे थे तभी किसी स्टाफ की नजर गाड़ी के नेम प्लेट पर पड़ गई और फिर जितना बुरा हो सकता था हुआ। मजबूर शहर  में जब वह भैया के कमरे पर आया तो उसका टिकट और सामान दरवाजे पर ही रखा था! चंदर ने खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि उसे अगर दुनिया में सबसे अधिक डर लगता था तो अपने भैया से और रंगेहाथ धराने के बाद वह अपना पक्ष रखता भी तो क्या रखता! चंदर मजबूर शहर से शिवपालगंज होते हुए वापस अपनी दिल्ली आ गया था।

इसके बाद चंदर और सुधा को 23 अगस्त को अपनी ‘‘शादी‘‘ की सालगिरह मनाने मजबूर शहर में मनाने के सपने से संतोष कर लेना पड़ा। फोन पर ही दोनों से 23 अगस्त को याद किया जब वे एक दूसरे से जुड़े थे और जुड़ते चले गए थे जबतक कि समय ने निर्दयता पूर्वक इन्हें अलग नहीं किया था!

सुधा की शादी को आज तीन दिन हो गए थे! अब चंदर अपनी डायरी के 16 अगस्त के पन्नों को पढ रहा था जब सुधा ने उसे कहा था कि वह अगर उसे पाना चाहता है तो हर गुरूवार को साईं बाबा के मंदिर जाए.....!

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शनिवार, 1 दिसंबर 2012

रेखाएं

                                  कितनी बदल गई रेखाएं

‘‘देखो रोज एक सेट बनाना बस... एक बार बैठना तो अधिक से अधिक दो बार ही उठना...... और हां अपना मोबाइल बंद रखना‘‘
‘‘...........‘‘
‘‘मैं भी जेनरल कम्पीटीशन में अब से ट्राई करूंगा, मेरी मेथमेटिक्स कमजोर है.....तुम मुझे मेथ्स बता देना और मैं तुम्हें इंग्लिश और जीएस करवाता रहूंगा....... तुम चिंता रत्ती भर भी मत करना" 
‘‘............‘‘
सुधा का जन्मदिन बनाने विशेष तौर पर चंदर अपने गांव आया था और यहीं कापरेटिव कालेज में मुंडेर पर बैठकर वह सुधा को बच्चे की तरह समझा रहा था।
चंदर ने ला की तैयारी छोड़ दी थी हालांकि परीक्षा में वह बैठ जाता लेकिन उसकी प्राथमिकता अब आत्मनिर्भर होने की थी ताकि सुधा के पापा उसकी शादी उससे कराने को राजी हो जाएं। सुधा ने भी चंदर को वादा दे दिया था कि वह शादी के बाद अपने पैसे से चंदर को ला करवाके ही दम लेगी। चंदर दिल्ली लौटने से पहले जब सुधा को ये सब समझा रहा था तो सुधा बस एकटक उसे देख रही थी। आखिरकार गाइड बंद करके चंदर ने उसे कहा था कि पहले तुम जीभर कर मुझे देख लो फिर करियर को लेकर बाद में बात करेंगे! इसके बाद चंदर ने अपनी वो गाइड सुधा को दे दी थी, दिल्ली वापस आकर चंदर ने बेरसराय के जवाहर बुक डिपो से दूसरी गाइड खरीद ली।

सुधा की शादी को दो दिन हो गए थे और चंदर ने इन दो दिनों में खाने के नाम पर छठ पूजा के प्रसाद के अलावा कुछ कौर भात खाया था। थाली आती और चंदर भोग लगाकर उसे लौटा देता। सुधा का इस तरह अपनी शादी  की बात छुपाना चंदर को रूलाता, तड़पाता, विचलित करता और आखिर में चंदर को विस्तर पर पटक कर सुबकने के लिए छोड़ देता।
चंदर अब भी यह मानने के लिए राजी नहीं था कि सुधा ने उसके साथ कुछ भी गलत किया। सुधा ने जो किया मजबूरी और बेबसी में किया, वह अब भी यही सोचता था..... लेकिन फिर सुधा ने शादी की रात उससे साफ आवाज में माफी क्यूं मांगी.....! चंदर ने तब उसे अभयदान दे दिया था यह सोचकर कि कहीं सुधा की शादी न टूट जाए!

तसलीमा नसरीन, सुरेन्द्र वर्मा लिखित ‘‘मुझे चांद चाहिए‘‘ की वर्शा वशिष्ठ उर्फ सिलबिल, भारत पाकिस्तान बंटवारे के समय जेनिव की बूटा सिंह से बेवफाई की दर्दनाक कथा, 1084वें की मां में सुजाता का विद्रोह सहित कई उपन्यासों के पात्र के बारे में वह सोचता और फिर बार बार अलग अलग निष्कर्षों पर पहुंचता........लेकिन इनमे भी सुधा का दोष कहीं नहीं होता।

सुधा के ‘‘नए चंदर‘‘ का परिवार समृद्ध था। नए चंदर के पिता रिटायर हो चुके थे और उसके दोनों बड़े भाई अच्छी जगह सरकारी नौकरी में थे। चंदर के बार बार तड़पने और बिलखने की गूंज से सुधा अब मुक्त हो चुकी थी। सुधा को अब न कोई ‘‘द हिन्दू‘‘ खरीदकर पढने को कहेगा और न कोई बार-बार यह समझाएगा कि कार्ल मार्क्स ने औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन क्यूं कहा था! सुधा अब सिर्फ खुश रहेगी और उसे वो हर ख़ुशी  मिलेगी जो उसके लिए ख़ुशी थी। समय के साथ वह खुद को इस अपराधबोध से भी मुक्त कर पाएगी जिसके लिए उसने चंदर को अपनी शादी की रात फोन पर साॅरी कहा था........ लेकिन चंदर क्या करेगा, कैसे करेगा और क्या कर पाएगा? कैसे भूलाएगा वो उसकी उस फुसफुसाहट को जो सुधा रात में उसके कानों में करती थी फोन पर ताकि बगल वाले कमरे में कोई सुन न ले कि वह देर रात किसी से फोन पर बात करती है? कैसे भूलाएगा वह अपना वह गुस्सा जो वह सुधा पर निकालता था, जब सुधा रात में बात करते करते सो जाती थी और चंदर इस ओर बकबकाता रह जाता था! कई बार तो चंदर खीझ जाता था, लेकिन फिर भी सुधा की ख़ुशी  और जिंदगी उसके लिए सबकुछ हो चुकी थी, खासकर तब जब एक रात चंदर को उसने फोन पर कहा था कि ‘‘मेरी जिंदगी ज्यादा बड़ी नहीं है!‘‘

छह साल तक लीव-इन-रिलेशनशिप में रहने के बाद यूपीएससी का फोर्थ एटेम्प्ट मिस कर देने की सजा आशीष को जो मिली थी चंदर की सजा उससे बहुत कम थी। आशीष और उसकी प्रमिका ने कमरे में मोमबत्ती जलाकर सात फेरे भी लिए थे और उसके बाद दोनों उस दिन को शादी की सालगिरह के रूप में मनाते भी थे। दिल्ली के मुखर्जी नगर में एक और सुधा और एक और चंदर की कथा इस समय चंदर के लिए मरहम थी। स्मिता के कहने पर ही आशीष ने चौथा एटेम्प्ट तैयारी से संतुष्टि न होने के बावजूद दिया था क्योंकि स्मिता उससे शादी करने की जल्दीबाजी कर रही थी। आखिर में स्मिता ने किसी और लड़के से शादी कर ली और अपना प्यार का प्रमाण देने के लिए जाते जाते एक बार आशीष के साथ हमविस्तर हो गई।
दूसरी कहानी जमशेदपुर के अभिनव की थी, जिसने सीआरपीएफ में चयन होने के बाद गाँव की ही एक लड़की से शादी कर ली और उसकी गर्लफ्रैंड को इसका पता तब चला जब उसने अभिनव और उसकी पत्नी की फोटो फेसबुक पर देखी। उसकी गर्लफ्रैंड ने दक्षिणी दिल्ली के एक अरूणा आसिफ अली मार्ग पर स्थित मेजबान रेस्तरां में चंदर को बताया था कि अभिनव ने उससे शादी का वादा किया था। चंदर तब अंदर से भींग गया था। आज वह अभिनव की जगह पर सुधा को उसकी गर्लफ्रैंड की जगह पर खुद को देख रहा था, यह जानते हुए भी कि सच्चाई यह नहीं है।
इन दो कहानियों से चंदर इस निष्कर्ष पर पहुंचने लगा था कि हो सकता है अगर वह अपने लक्ष्य को पा लेता तो वह सुधा की बजाय किसी और से शादी कर लेता। अगर आशीष के असफल होने पर उसकी प्रेमिका उसे छोड़ सकती है और अभिनव सफल होने पर अपनी प्रमिका को छोड़ सकता है तो फिर इसकी क्या गारंटी है कि वह सुधा के साथ धोखा नहीं करता!

खुद को दोष देकर और खुद पर शक करने के बाद भी चंदर सुधा को भुला नहीं पा रहा था।